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त आ॑दि॒त्यास॑ उ॒रवो॑ गभी॒रा अद॑ब्धासो॒ दिप्स॑न्तो भूर्य॒क्षाः। अ॒न्तः प॑श्यन्ति वृजि॒नोत सा॒धु सर्वं॒ राज॑भ्यः पर॒मा चि॒दन्ति॑॥

English Transliteration

ta ādityāsa uravo gabhīrā adabdhāso dipsanto bhūryakṣāḥ | antaḥ paśyanti vṛjinota sādhu sarvaṁ rājabhyaḥ paramā cid anti ||

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Pad Path

ते। आ॒दि॒त्यासः॑। उ॒रवः॑। ग॒भी॒राः। अद॑ब्धासः। दिप्स॑न्तः। भू॒रि॒ऽअ॒क्षाः। अ॒न्तरिति॑। प॒श्य॒न्ति॒। वृ॒जि॒ना। उ॒त। सा॒धु। सर्व॑म्। राज॑ऽभ्यः। प॒र॒मा। चि॒त्। अन्ति॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:27» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:6» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (गभीराः) गम्भीर स्वभावयुक्त (उरवः) तीव्रबुद्धिवाले (अदब्धासः) अहिंसनीय (भूर्यक्षाः) बहुत प्रकार से देखने जाननेवाले (आदित्यासः) अड़तालीस वर्ष के ब्रह्मचर्य को सेवके पूर्ण विद्यावाले विद्वान् हैं (ते) वे (परमा) उत्तम कर्मों का आचरण करते जो (वृजिना) पाप करते हुए (दिप्सन्तः) दम्भ की इच्छा करनेवाले हों उनको (चित्) ही (अन्तः) अन्तःकरण में (अन्ति) निकट से (पश्यन्ति) देख लेते हैं अर्थात् उनसे मिलते नहीं और जो (राजभ्यः) राजपुरुषों के लिये (सर्वम्) सब (साधु) श्रेष्ठ काम करते हैं, वे परीक्षा कर सकते हैं ॥३॥
Connotation: - परीक्षा करनेवाले जन श्रेष्ठ और दुष्ट पुरुषों की उत्तम प्रकार परीक्षा करते उत्तम स्वभाववालों के सत्कार और कुत्सित चरित्रवालों के अनादर को करके विद्या की उन्नति निरन्तर करें ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

ये गभीरा उरवोऽदब्धासो भूर्यक्षा आदित्यासः सन्ति ते परमा चरन्ति। उत ये वृजिना कुर्वन्तो दिप्सन्तः स्युस्ताँश्चिदन्तरन्ति पश्यन्ति। ये च राजभ्यः सर्वं साधु कुर्वन्ति ते परीक्षां कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥३॥

Word-Meaning: - (ते) पूर्वोक्ताः (आदित्यासः) पूर्णविद्याः कृताष्टाचत्वारिंशद्वर्षब्रह्मचर्याः (उरवः) बहुप्रज्ञाः (गभीराः) शीलवन्तः (अदब्धासः) अहिंसनीयाः (दिप्सन्तः) दम्भितुमिच्छवः (भूर्यक्षाः) भूरि बहून्यक्षीणि दर्शनानि येषान्ते (अन्तः) आभ्यन्तरे (पश्यन्ति) प्रेक्षन्ते (वृजिना) वृजिनानि वर्जयितव्यानि पापानि (उत) अपि (साधु) श्रेष्ठम् (सर्वम्) (राजभ्यः) (परमा) प्रकृष्टानि कर्माणि (चित्) (अन्ति) अन्तिके। अत्र परस्य लोपः ॥३॥
Connotation: - परीक्षकाः सज्जनान् दुष्टांश्च सम्यक् परीक्ष्य सुशीलानां सत्कारं दुश्चरित्राणामसत्कारं विधाय विद्योन्नतिं सततं कुर्युः ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - परीक्षकांनी श्रेष्ठ व दुष्ट पुरुषांची उत्तम प्रकारे परीक्षा करून सुस्वभावी माणसांचा सत्कार व दुश्चरित्र असलेल्या माणसांचा अनादर करून निरंतर विद्येची वृद्धी करावी. ॥ ३ ॥