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यो राज॑भ्य ऋत॒निभ्यो॑ द॒दाश॒ यं व॒र्धय॑न्ति पु॒ष्टय॑श्च॒ नित्याः॑। स रे॒वान्या॑ति प्रथ॒मो रथे॑न वसु॒दावा॑ वि॒दथे॑षु प्रश॒स्तः॥

English Transliteration

yo rājabhya ṛtanibhyo dadāśa yaṁ vardhayanti puṣṭayaś ca nityāḥ | sa revān yāti prathamo rathena vasudāvā vidatheṣu praśastaḥ ||

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Pad Path

यः। राज॑ऽभ्यः। ऋ॒त॒निऽभ्यः॑। द॒दाश॑। यम्। व॒र्धय॑न्ति। पु॒ष्टयः॑। च॒। नित्याः॑। सः। रे॒वान्। या॒ति॒। प्र॒थ॒मः। रथे॑न। व॒सु॒ऽदावा॑। वि॒दथे॑षु। प्र॒ऽश॒स्तः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:27» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:8» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:3» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर कौन प्रशस्त हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - (यः) जो राजा (राजभ्यः) न्यायप्रकाश सभासद्राजपुरुषों (च) और (तनिभ्यः) सत्य न्याय करनेवाली राणियों के लिये उपदेश (ददाश) देता है (यम्) जिसको (नित्याः) सनातन नीति तथा (पुष्टयः) शरीर आत्मा के बल को (वर्द्धयन्तु) बढ़ाते हैं (सः) वह (रेवान्) प्रशस्त ऐश्वर्यवाला (वसुदावा) धनों का दाता (प्रथमः) मुख्य कुलीन (प्रशस्तः) प्रशंसा को प्राप्त (विदथेषु) जानने योग्य सङ्ग्रामादि व्यवहारों में (रथेन) रथ से विजय को (याति) प्राप्त होता है ॥१२॥
Connotation: - जो पुरुष और जो स्त्री पूर्ण विद्यावाले हों, वे न्यायाधीश होकर पुरुष और स्त्रियों की उन्नति करें, वे सब प्रशंसा के योग्य विजय करनेवाले जानने चाहिये ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः के प्रशस्ताः स्युरित्याह।

Anvay:

यो राजभ्य तनिभ्यश्चोपदेशं यं नित्याः पुष्टयो वर्द्धयन्ति स रेवान् वसुदावा प्रथमः प्रशस्तो विदथेषु रथेन विजयं याति ॥१२॥

Word-Meaning: - (यः) (राजभ्यः) न्यायप्रकाशकेभ्यः सभासद्भ्यः (तनिभ्यः) सत्यन्यायकर्त्रीभ्यो राज्ञीभ्यः (ददाश) दाशति ददाति (यम्) (वर्द्धयन्ति) (पुष्टयः) शरीरात्मबलानि (च) (नित्याः) शाश्वत्यो नीतयः (सः) (रेवान्) प्रशस्ता रायो विद्यन्ते यस्य सः (याति) प्राप्नोति (प्रथमः) आदिमः (रथेन) यानेन (वसुदावा) यो वसूनि ददाति सः (विदथेषु) विज्ञातव्येषु सङ्ग्रामादिषु व्यवहारेषु (प्रशस्तः) अत्युत्कृष्टः ॥१२॥
Connotation: - ये पुरुषा यास्स्त्रियश्च पूर्णविद्याः स्युस्ते ताश्च न्यायाधीशा भूत्वा पुरुषाणां स्त्रीणां चोन्नतिं कुर्वन्तु ते ताश्च प्रशंसनीया विजयप्रदा विज्ञेयाः ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे पुरुष व ज्या स्त्रिया पूर्ण विद्यायुक्त असतात त्यांनी न्यायाधीश बनून पुरुष व स्त्रियांची उन्नती करावी. ते प्रशंसापात्र असून त्यांना विजयी जाणावे. ॥ १२ ॥