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अध॒ त्विषी॑माँ अ॒भ्योज॑सा॒ क्रिविं॑ यु॒धाभ॑व॒दा रोद॑सी अपृणदस्य म॒ज्मना॒ प्र वा॑वृधे। अध॑त्ता॒न्यं ज॒ठरे॒ प्रेम॑रिच्यत॒ सैनं॑ सश्चद्दे॒वो दे॒वं स॒त्यमिन्द्रं॑ स॒त्य इन्दुः॑॥

English Transliteration

adha tviṣīmām̐ abhy ojasā kriviṁ yudhābhavad ā rodasī apṛṇad asya majmanā pra vāvṛdhe | adhattānyaṁ jaṭhare prem aricyata sainaṁ saścad devo devaṁ satyam indraṁ satya induḥ ||

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Pad Path

अध॑। त्विषि॑ऽमान्। अ॒भि। ओज॑सा। क्रिवि॑म्। यु॒धा। अ॒भ॒व॒त्। आ। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒पृ॒ण॒त्। अ॒स्य॒। म॒ज्मना॑। प्र। व॒वृ॒धे॒। अध॑त्त। अ॒न्यम्। ज॒ठरे॑। प्र। ई॒म्। अ॒रि॒च्य॒त॒। सः। ए॒न॒म्। स॒श्च॒त्। दे॒वः। दे॒वम्। स॒त्यम्। इन्द्र॑म्। स॒त्यः। इन्दुः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:22» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:28» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब बिजली विषय को अगले मन्त्र में कहा गया है।

Word-Meaning: - जो (त्विषीमान्) बहुत दीप्तियुक्त (ओजसा) बल से बड़ा (अभवत्) होता है (युधा) संप्रहार से (रोदसी) द्यावापृथिवी को (क्रिविम्) कूप के समान (अपृणत्) तृप्त होता है (अथ) इसके अनन्तर इस जगदीश्वर के (मज्मना) बल से (प्र,वावृधे) अच्छे प्रकार बढ़ता है (जठरे) अपने भीतर (अन्यम्) और को (अधत्त) धारण करता और जो (ईम्) जल के साथ (प्रारिच्यत) औरों से अलग है (एनम्) इस (सत्यम्) सत्य (देवम्) सुख के देनेवाले (इन्द्रम्) बिजली रूप अग्नि को (अभि,आ सश्चत्) जो प्रत्यक्ष सम्बन्ध करता है (सः) वह (सत्यः) सत्य (इन्दुः) जल के समान आर्द्र स्वभाववाला (देवः) प्रकाशमान परमेश्वर है ॥२॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो जिसने यह सब लोकों का प्रकाश करने और कूप के समान सींचनेवाला बड़ा सूर्य लोक रचा और अपने में धारण किया, जो सबसे अलग व्याप्त भी है, वह नित्य परमेश्वर देव है, उसका नित्य ध्यान करो ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

विद्युद्विषयमाह।

Anvay:

यस्त्विषीमानोजसा महानभवद्युधा रोदसी क्रिविमिवापृणदधास्य जगदीश्वरस्य मज्मना प्रवावृधे जठरेऽन्यमधत्त य ईं प्रारिच्यत एनं सत्यं देवमिन्द्रमभ्यासश्चत्स सत्य इन्दुर्देवः परमेश्वरोऽस्ति ॥२॥

Word-Meaning: - (अध) अथ (त्विषीमान्) बहुदीप्तियुक्तः (अभि) आभिमुख्ये (ओजसा) बलेन (क्रिविम्) कूपम् (युधा) सम्प्रहारेण (अभवत्) भवति (आ) समन्तात् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अपृणत्) तर्पयति (अस्य) (मज्मना) बलेन (प्र) (वावृधे) वर्द्धते (अधत्त) दधाति (अन्यम्) भिन्नम् (जठरे) आभ्यन्तरे (प्र) (ईम्) जलम् (अरिच्यत) रिच्यतेऽतिरिक्तोऽस्ति (सः) परमेश्वरः (एनम्) (सश्चत्) सश्चति समवयति (देवः) (देवम्) सुखस्य दातारम् (सत्यम्) सत्सु साधुम् (इन्द्रम्) विद्युतम् (सत्यः) सत्सु साधुः (इन्दुः) जलवदार्द्रस्वभावः ॥२॥
Connotation: - हे मनुष्या येनाऽयं सर्वलोकप्रकाशकः कूपवत्सेचको महान् सूर्य्यलोको रचितः स्वस्मिन् धृतो यः सर्वेभ्यः पृथक् व्याप्तश्च नित्यः परमेश्वरो देवोऽस्ति तं नित्यं ध्यायत ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! ज्याने या सर्व लोकांचा प्रकाशक, कूपाप्रमाणे तृप्तीकारक असा मोठा सूर्यलोक निर्माण केलेला आहे व स्वतःमध्ये धारण केलेला आहे. जो सर्वात निराळा असून व्याप्तही असतो तो नित्य परमेश्वर देव असतो, त्याचे सदैव ध्यान करा. ॥ २ ॥