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त्रिक॑द्रुकेषु महि॒षो यवा॑शिरं तुवि॒शुष्म॑स्तृ॒पत्सोम॑मपिब॒द्विष्णु॑नासु॒तं यथाव॑शत्। स ईं॑ ममाद॒ महि॒ कर्म॒ कर्त॑वे म॒हामु॒रुं सैनं॑ सश्चद्दे॒वो दे॒वं स॒त्यमिन्द्रं॑ स॒त्य इन्दुः॑॥

English Transliteration

trikadrukeṣu mahiṣo yavāśiraṁ tuviśuṣmas tṛpat somam apibad viṣṇunā sutaṁ yathāvaśat | sa īm mamāda mahi karma kartave mahām uruṁ sainaṁ saścad devo devaṁ satyam indraṁ satya induḥ ||

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Pad Path

त्रिऽक॑द्रुकेषु। म॒हि॒षः। यव॑ऽआशिरम्। तु॒वि॒ऽशुष्मः॑। तृ॒पत्। सोम॑म्। अ॒पि॒ब॒त्। विष्णु॑ना। सु॒तम्। यथा॑। अव॑शत्। सः। ई॒म्। म॒मा॒द॒। महि॑। कर्म॑। कर्त॑वे। म॒हाम्। उ॒रुम्। सः। ए॒न॒म्। स॒श्च॒त्। दे॒वः। दे॒वम्। स॒त्यम्। इन्द्र॑म्। स॒त्यः। इन्दुः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:22» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:28» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चार चावाले बाईसवें सूक्त का आरम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में सूर्य्य का विषय कहते हैं।

Word-Meaning: - जो (तुविशुष्मः) बहुत बलवाला (महिषः) बड़ा (तृपत्) तृप्त करता हुआ (त्रिकद्रुकेषु) जिनमें तीन आह्वान विद्यमान उनमें (यवाशिरम्) यवों के भक्षण करनेवाले को और (विष्णुना) व्यापक परमेश्वर वा वायु से (सुतम्) उत्पादन किये हुए (सोमम्) रसको (यथा) जैसे (अपिबत्) पीता और (अवशत्) कामना करता है (सः) वह (ईम्) जलसे (महि) बड़े (कर्म) कर्म के (कर्तवे) करने को (ममाद) हर्षित हो, तथा जो (सत्यः) नाशरहित (इन्दुः) चन्द्रमा (देवः) सब ओर से प्रकाशमान (एनम्) इस (महाम्) महात्माओं के (उरुम्) बहुत (सत्यम्) अविनाशी (देवम्) प्रकाशमान (इन्द्रम्) सर्व लोकों को आधाररूप सूर्य लोक को (सश्चत्) संयुक्त करता, वह पूज्य होता है ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मनुष्य जगदीश्वर ने निर्मित किये लोकों में विद्या और उत्तम यत्न से प्रिय मनोहर भोग कर सकता है, वह अविनाशी परमात्मा को जान वा जना सकता है ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्य्यविषयमाह।

Anvay:

यो तुविशुष्मो महिषस्तृपत् त्रिकद्रुकेषु यवाशिरं विष्णुना सुतं सोमं यथाऽपिबदवशच्च स ईं महि कर्म कर्त्तवे ममाद यः सत्य इन्दुर्देव एनं महामुरुं सत्यं देवमिन्द्रं सश्चत्स पूज्यो भवति ॥१॥

Word-Meaning: - (त्रिकद्रुकेषु) त्रीणि कद्रुकान्याह्वानानि येषु तेषु (महिषः) महान् (यवाशिरम्) यो यवानश्नाति तम् (तुविशुष्मः) तुवि बहु शुष्मं बलं यस्य सः (तृपत्) तृप्यन्। अत्र विकरणव्यत्ययेन शः (सोमम्) रसम् (अपिबत्) पिबति (विष्णुना) व्यापकेन परमेश्वरेण वायुना वा (सुतम्) निष्पादितम् (यथा) येन प्रकारेण (अवशत्) कामयते (सः) (ईम्) जलेन (ममाद) हृष्येत् (महि) महत् (कर्म्म) (कर्त्तवे) कर्त्तुम् (महाम्) महताम् (उरुम्) बहुम् (सः) (एनम्) (सश्चत्) संयोजयति। अत्राडभावः (देवः) सर्वतः प्रकाशमानः (देवम्) द्योतमानम् (सत्यम्) अविनाशिनम् (इन्द्रम्) सर्वलोकधारकं सूर्य्यम् (सत्यः) नाशरहितः (इन्दुः) चन्द्रः ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यो मनुष्यः जगदीश्वरेण निर्मितेषु लोकेषु विद्याप्रयत्नाभ्यां प्रियं कमनीयं भोगं कर्त्तुं शक्नोति सो विनाशिनं परमात्मानमपि वेदितुं वेदयितुं वा शक्नोति ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात सूर्य, विद्युत, ईश्वर व जीवाच्या गुणकर्मांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो माणूस जगदीश्वराने निर्माण केलेल्या लोकांमध्ये (गोलांमध्ये) विद्या व प्रयत्नाने आवडते भोग भोगू शकतो, तो अविनाशी परमेश्वराला जाणू शकतो किंवा जाणवून घेऊ शकतो. ॥ १ ॥