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स॒त्रा॒सा॒हो ज॑नभ॒क्षो ज॑नंस॒हश्च्यव॑नो यु॒ध्मो अनु॒ जोष॑मुक्षि॒तः। वृ॒तं॒च॒यः सहु॑रिर्वि॒क्ष्वा॑रि॒त इन्द्र॑स्य वोचं॒ प्र कृ॒तानि॑ वी॒र्या॑॥

English Transliteration

satrāsāho janabhakṣo janaṁsahaś cyavano yudhmo anu joṣam ukṣitaḥ | vṛtaṁcayaḥ sahurir vikṣv ārita indrasya vocam pra kṛtāni vīryā ||

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Pad Path

स॒त्रा॒ऽस॒हः। ज॒न॒ऽभ॒क्षः। ज॒न॒म्ऽस॒हः। च्यव॑नः। यु॒ध्मः। अनु॑। जोष॑म्। उ॒क्षि॒तः। वृ॒त॒म्ऽच॒यः। सहु॑रिः। वि॒क्षु। आ॒रि॒तः। इन्द्र॑स्य। वोच॑म्। प्र। कृ॒तानि॑। वी॒र्या॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:21» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:27» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो जैसे (सत्रासाहः) जो सत्य को सहता (जनभक्षः) जनों के सेवने योग्य (जनंसहः) जनों को सहने (च्यवनः) दुष्टों को गिराने (युध्मः) दुष्टों को युद्ध करने (वृतञ्चयः) और वर्त्तमान पदार्थ को इकट्ठा करनेवाला (सहुरिः) सहनशील (आरितः) प्राप्त (जोषम्) प्रीति को (उक्षितः) सेवता हुआ मैं (विक्षु) प्रजाजनों में (कृतानि) सिद्ध हुए (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् (वीर्य्या) पराक्रमयुक्त कर्मों को (प्र,वोचम्) अच्छे प्रकार कहूँ वैसे तुम (अनु) पीछे कहो ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो शम-दम और यमादि शुभकर्मों का आचरण करनेवाले जन प्रजा में विद्या बढ़ाते हैं, वे जनों के सेवने योग्य होते हैं ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यथा सत्रासाहो जनभक्षो जनंसहश्च्यवनो युध्मो वृतञ्चयः सहुरिरारितो जोषमुक्षितस्सन्नहं विक्षु कृतानि वीर्य्या प्रवोचं तथा यूयमनुवदत ॥३॥

Word-Meaning: - (सत्रासाहः) यः सत्यं सहते (जनभक्षः) योजनैर्भक्षः सेवनीयः (जनंसहः) यो जनान् सहते (च्यवनः) च्यावयिता (युध्मः) योद्धा (अनु) (जोषम्) प्रीतिम् (उक्षितः) सेवितः (वृतञ्चयः) यो वर्त्तते तं चिनोति सः (सहुरिः) सहनस्वभावः (विक्षु) प्रजासु (आरितः) प्राप्तः (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवतः (वोचम्) वदेयम् (प्र) (कृतानि) निष्पन्नानि (वीर्य्या) पराक्रमयुक्तानि कर्माणि ॥३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये शमदमयमादिशुभकर्माचारिणो जनाः प्रजायां विद्या वर्द्धयन्ति ते जनैः सेव्या भवन्ति ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे शम, दम व यम इत्यादी शुभ कर्मांचे आचरण करणारे लोक प्रजेमध्ये विद्या वाढवितात त्यांचा लोकांनी अंगीकार करावा. ॥ ३ ॥