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नू॒नं सा ते॒ प्रति॒ वरं॑ जरि॒त्रे दु॑ही॒यदि॑न्द्र॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑। शिक्षा॑ स्तो॒तृभ्यो॒ माति॑ ध॒ग्भगो॑ नो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

English Transliteration

nūnaṁ sā te prati varaṁ jaritre duhīyad indra dakṣiṇā maghonī | śikṣā stotṛbhyo māti dhag bhago no bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

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Pad Path

नू॒नम्। सा। ते॒। प्रति॑। वर॑म्। ज॒रि॒त्रे। दु॒ही॒यत्। इ॒न्द्र॒। दक्षि॑णा। म॒घोनी॑। शिक्ष॑। स्तो॒तृऽभ्यः॑। मा। अति॑। ध॒क्। भगः॑। नः॒। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:20» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:26» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब देनेवालों के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) देनेवाले (ते) आपकी (सा) वह (मघोनी) बहुत धनादि पदार्थों से युक्त (दक्षिणा) देनी (प्रतिवरम्) अत्युत्तम सुख (जरित्रे) प्रशंसा करनेवाले के लिये (स्तोतृभ्यः) और स्तुति करनेवालों के लिये (नूनम्) निश्चय कर (दुहीयत्) पूरा करे और (नः) हम लोगों को (मातिधक्) मत नष्ट करे और आप हम लोगों को शिक्ष (विद्या) ग्रहण कराइये तथा जिससे (भगः) ऐश्वर्य बढ़ता है उससे (सुवीराः) सकल विद्याव्यापी हम लोग (विदथे) पदार्थविज्ञान में (बृहत्) बहुत (वदेम) कहें ॥९॥
Connotation: - जो निरन्तर देने और लेनेवाले सर्वदा सत्य की शिक्षा देते और किसी के हृदय को वृथा नहीं सन्तापते हैं, वे बड़े होते हैं ॥९॥ इस सूक्त में इन्द्र-विद्वान्-ईश्वर और सभापति आदि के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ संगति जाननी चाहिये ॥ यह बीसवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ दातृगुणानाह।

Anvay:

हे इन्द्र ते तव सा मघोनी दक्षिणा प्रतिवरं जरित्रे स्तोतृभ्यश्च नूनं दुहीयन्नोऽस्मान्माति धक् शिक्ष यया भगो वर्धते तया सुवीराः सन्तो वयं विदथे बृहद्वदेम ॥९॥

Word-Meaning: - (नूनम्) (सा) वर्द्धिका (ते) तव (प्रति) (वरम्) अत्युत्तमम् (जरित्रे) प्रशंसकाय (दुहीयत्) प्रपूरयेत् (इन्द्र) (दक्षिणा) (मघोनी) बहुधनादियुक्ता (शिक्ष) विद्यां ग्राहय (स्तोतृभ्यः) (मा) (अति,धक्) (भगः) (नः) अस्मान् (बृहत्) (वदेम) (विदथे) पदार्थविज्ञाने (सुवीराः) सकलविद्याव्यापिनः ॥९॥
Connotation: - ये निरन्तरं दातारोऽप्रतिग्रहीतारः सर्वदा सत्यं शिक्षन्ते कस्यापि हृदयं वृथा न तापयन्ति ते महान्तो भवन्तीति ॥९॥ अत्रेन्द्रविद्युदीश्वरसभेशादिगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह संगतिर्वेद्या ॥ इति विंशतितमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सदैव देवाण व घेवाण करणारे असून सत्य शिकवितात विनाकारण कुणाला त्रास देत नाहीत, ते मोठे असतात. ॥ ९ ॥