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स नो॑ रे॒वत्स॑मिधा॒नः स्व॒स्तये॑ संदद॒स्वान्र॒यिम॒स्मासु॑ दीदिहि। आ नः॑ कृणुष्व सुवि॒ताय॒ रोद॑सी॒ अग्ने॑ ह॒व्या मनु॑षो देव वी॒तये॑॥

English Transliteration

sa no revat samidhānaḥ svastaye saṁdadasvān rayim asmāsu dīdihi | ā naḥ kṛṇuṣva suvitāya rodasī agne havyā manuṣo deva vītaye ||

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Pad Path

सः। नः॒। रे॒वत्। स॒म्ऽइ॒धा॒नः। स्व॒स्तये॑। स॒म्ऽद॒द॒स्वान्। र॒यिम्। अ॒स्मासु॑। दी॒दि॒हि॒। आ। नः॒। कृ॒णु॒ष्व॒। सु॒वि॒ताय॑। रोद॑सी॒ इति॑। अग्ने॑। ह॒व्या। मनु॑षः। दे॒व॒। वी॒तये॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:2» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:21» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (देव) व्यवहार-विद्याकुशल (अग्ने) विद्वान् ! जैसे (सः) वह (समिधानः) सम्यक् प्रकाशमान (संददस्वान्) अच्छे प्रकार देनेवाला अग्नि (नः) हम लोगों के (स्वस्तये) सुख के लिये (रेवत्) बहुत धनयुक्त व्यवहार को धारण करता है, वैसे आप (अस्मासु) हम लोगों में (रयिम्) धन को (आदीदिहि) प्रकाश कीजिये और (नः) हम लोगों को (सुविताय) ऐश्वर्य के लिए (कृणुष्व) संनद्ध कीजिये वा जैसे (रोदसी) द्यावापृथिवी (हव्या) ग्रहण करने योग्य पदार्थ (मनुषः) मनुष्यों को प्राप्त करती हुई (वीतये) सुख प्राप्ति के लिये होती हैं, वैसे आप हूजिये ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे संसिद्ध किया हुआ अग्नि धन प्राप्ति का निमित्त होता है, वैसे अच्छे प्रकार प्राप्त हुए विद्वान् जन मनुष्यों को विद्याप्राप्ति के हेतु होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे देवाऽग्ने विद्वन् यथा स समिधानः संददस्वानग्निर्नः स्वस्तये रेवद्दधाति तथा त्वमस्मासु रयिमा दीदिहि नः सुविताय कृणुष्व च यथा वा रोदसी हव्या मनुषः प्रापयन्त्यौ वीतये स्यातां तथा त्वं भव ॥६॥

Word-Meaning: - (सः) (नः) अस्माकम् (रेवत्) बहुधनयुक्तं व्यवहारम् (समिधानः) सम्यक् प्रकाशमानः (स्वस्तये) सुखाय (संददस्वान्) सम्यग्दाता (रयिम्) श्रियम् (अस्मासु) (दीदिहि) प्रकाशय (आ) (नः) अस्मान् (कृणुष्व) कुरु (सुविताय) ऐश्वर्याय (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अग्ने) विद्वन् (हव्या) होतुमादातुमर्हाणि (मनुषः) मनुष्यान् (देव) व्यवहारविद्याविचक्षण (वीतये) प्राप्तये ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा संसाधितोऽग्निर्धनप्राप्तिनिमित्तो जायते तथा सुसङ्गता विद्वांसो मनुष्याणां विद्याप्राप्तिहेतवो भवन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सम्यक प्रकाशमान अग्नी धनप्राप्तीचे निमित्त असतो तसे चांगले विद्वान लोक माणसांना विद्या देणारे असतात. ॥ ६ ॥