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स होता॒ विश्वं॒ परि॑ भूत्वध्व॒रं तमु॑ ह॒व्यैर्मनु॑ष ऋञ्जते गि॒रा। हि॒रि॒शि॒प्रो वृ॑धसा॒नासु॒ जर्भु॑र॒द्द्यौर्न स्तृभि॑श्चितय॒द्रोद॑सी॒ अनु॑॥

English Transliteration

sa hotā viśvam pari bhūtv adhvaraṁ tam u havyair manuṣa ṛñjate girā | hiriśipro vṛdhasānāsu jarbhurad dyaur na stṛbhiś citayad rodasī anu ||

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Pad Path

सः। होता॑। विश्व॒म्। परि॑। भू॒तु॒। अ॒ध्व॒रम्। तम्। ऊँ॒ इति॑। ह॒व्यैः। मनु॑षः। ऋ॒ञ्ज॒ते॒। गि॒रा। हि॒रि॒ऽशि॒प्रः। वृ॒ध॒सा॒नासु॑। जर्भु॑रत्। द्यौः। न। स्तृऽभिः॑। चि॒त॒य॒त्। रोद॑सी॒ इति॑। अनु॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:2» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (हिरिशिप्रः) ऐसा है कि जिसके मुख्यावयव पदार्थ को हरने और (होता) ग्रहण करनेवाले हैं, (तम्) उस (विश्वम्) समस्त (अध्वरम्) न नष्ट करने योग्य शिल्पसाध्य व्यवहार को (परि भूतु) विचारे और उसको (उ) तर्क-वितर्क के साथ (हव्यैः) ग्रहण करने योग्य पदार्थों और (गिरा) वाणी से (मनुषः) मनुष्य (ञ्जते) प्रसिद्ध करते हैं। जो अग्नि (वृधसानासु) बढ़ी हुई प्रजाओं में (रोदसी) द्यावापृथिवी के (अनु) अनुकूल (द्यौः) सूर्य (स्तृभिः) नक्षत्र अर्थात् तारागणों के साथ (न) जैसे वैसे पदार्थों से (चितयत्) चेतन करे वा (जर्भुरत्) निरन्तर पदार्थों को धारण करे, (सः) वह सबको कार्यों में अच्छे प्रकार युक्त कराने योग्य है ॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्य नक्षत्रों को प्रकाशित करता है, वैसे यह अग्नि समस्त विश्व को प्रकाशित करता है। जो पढ़ने और सुनने से अग्नि विद्या का ग्रहण करते हैं, वे सुभूषित होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यो हिरिशिप्रो होता तं विश्वमध्वरं परि भूतु तमु हव्यैर्गिरा मनुष ञ्जते योऽग्निर्वृधसानासु रोदसी अनु द्यौः स्तृभिर्न चितयज्जर्भुरत्स सर्वैः कार्येषु संप्रयोक्तव्यः ॥५॥

Word-Meaning: - (सः) (होता) आदाता (विश्वम्) सर्वम् (परि) (भूतु) (अध्वरम्) अहिंसनीयं शिल्पसाध्यं व्यवहारम् (तम्) (उ) वितर्के (हव्यैः) होतुं ग्रहीतुं योग्यैः पदार्थैः (मनुषः) मनुष्याः (ञ्जते) प्रसाधयन्ति (गिरा) वाण्या (हिरिशिप्रः) हरणशीलहनुः (वृधसानासु) वर्द्धमानासु प्राजासु (जर्भुरत्) भृशं धरेत् (द्यौः) सूर्यः (न) इव (स्तृभिः) नक्षत्रैः (चितयत्) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अनु) ॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्यो नक्षत्राणि प्रकाशयति तथायमग्निः सर्वं विश्वं विभावयति। ये पठनश्रवणाभ्यामग्निविद्यां गृह्णन्ति ते सुभूषिता जायन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सूर्य नक्षत्रांना प्रकाशित करतो तसे हा अग्नी संपूर्ण विश्वाला प्रकाशित करतो. जे शिकून व श्रवण करून अग्निविद्या ग्रहण करतात ते शोभायमान होतात. ॥ ५ ॥