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ये स्तो॒तृभ्यो॒ गोअ॑ग्रा॒मश्व॑पेशस॒मग्ने॑ रा॒तिमु॑पसृ॒जन्ति॑ सू॒रयः॑। अ॒स्माञ्च॒ तांश्च॒ प्र हि नेषि॒ वस्य॒ आ बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑॥

English Transliteration

ye stotṛbhyo goagrām aśvapeśasam agne rātim upasṛjanti sūrayaḥ | asmāñ ca tām̐ś ca pra hi neṣi vasya ā bṛhad vadema vidathe suvīrāḥ ||

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Pad Path

ये। स्तो॒तृऽभ्यः॑। गोऽअ॑ग्राम्। अश्व॑ऽपेशसम्। अग्ने॑। रा॒तिम्। उ॒प॒ऽसृ॒जन्ति॑। सू॒रयः॑। अ॒स्मान्। च॒। तान्। च॒। प्र। हि। नेषि॑। वस्यः॑। आ। बृ॒हत्। व॒दे॒म॒। वि॒दथे॑। सु॒ऽवीराः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:2» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:21» Mantra:8 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् ! आप (ये) जो (सूरयः) विद्वान् जन (स्तोतृभ्यः) सर्व विद्याओं की प्रशंसा करनेवाले विद्वानों की (गोअग्राम्) जिसमें पृथिवी वा धेनु मुख्य है और (अश्वपेशसम्) अश्वादिकों के रूप विद्यमान उस (रातिम्) दान को (उपसृजन्ति) देते हैं। (तान्) उनको (च) और अन्यों को तथा उनके समान (अस्मान्) हम लोगों को (च) और हमारे सम्बन्धियों को (हि) ही आप (प्रणेषि) सब विषय प्राप्त करते हैं। इससे (विदथे) विशेष कर जानने योग्य व्यवहार में (सुवीराः) सुन्दर समस्त विद्याओं में व्याप्त हम लोग (वस्यः) अतिशय कर सब में वसने और अपने में औरों का निवास करानेवाले (बृहत्) सबसे बड़े ब्रह्म को (आ वदेम) अच्छे प्रकार कहें उसका उपदेश करें ॥१३॥
Connotation: - जो उत्तम विद्वान् जन पढ़ानेवाले विद्वानों के लिए अधिकतर विद्या को अच्छे प्रकार देकर उनको श्रीमान् करते हैं, वे हमारे प्रणेता अर्थात् सर्व विषयों को प्राप्त करनेवाले हों ॥१३॥ इस सूक्त में अग्नि विषय से विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह समझना चाहिये॥ यह दूसरे मण्डल में दूसरा सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने त्वं ये सूरयः स्तोतृभ्यो गो अग्रामश्वपेशसं रातिमुपसृजन्ति तानन्याँश्च तत्सदृशानस्मानस्मत्सम्बन्धिनश्च हि त्वं प्रणेषि तस्माद्विदथे सुवीरा वयं वस्यो बृहदावेदम ॥१३॥

Word-Meaning: - (ये) (स्तोतृभ्यः) सर्वविद्याप्रशंसितृभ्यो विद्वद्भ्यः (गोअग्राम्) गौः पृथिवी धेनुर्वाऽग्रा मुख्या यस्यान्ताम् (अश्वपेशसम्) अश्वादीनां पेशो रूपं यस्यास्ताम् (अग्ने) विद्वन् (रातिम्) दानम् (उपसृजन्ति) प्रयच्छन्ति (सूरयः) विद्वांसः (अस्मान्) (च) (तान्) (च) (प्र) (हि) यतः (नेषि) प्रापयसि (वस्यः) वसीयोऽतिशयेन वासयितृ (आ) (बृहत्) महद्वस्तु ब्रह्म (वदेम) उपदिशेम (विदथे) विज्ञातव्ये व्यवहारे (सुवीराः) सुष्ठुसकलविद्याव्यापिनः ॥१३॥
Connotation: - ये विद्वत्तमा अध्यापकेभ्यो विद्वद्भ्योऽधिकामधिकां विद्यां प्रदाय श्रीमतः कुर्वन्ति तेऽस्माकं प्रणेतारो भवन्तु ॥१३॥ अत्राऽग्निविषयेण विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीस्ति वेदितव्यम् ॥ इति द्वितीयमण्डले द्वितीयं सूक्तमेकविंशतितमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे उत्तम विद्वान लोक शिकविणाऱ्या विद्वानासाठी जास्तीत जास्त विद्या देऊन त्यांना श्रीमंत करतात ते आमचे प्रणेता अर्थात् सर्व विषय शिकविणारे अध्यापक असावेत. ॥ १३ ॥