Go To Mantra

अ॒स्य म॑न्दा॒नो मध्वो॒ वज्र॑ह॒स्तोऽहि॒मिन्द्रो॑ अर्णो॒वृतं॒ वि वृ॑श्चत्। प्र यद्वयो॒ न स्वस॑रा॒ण्यच्छा॒ प्रयां॑सि च न॒दीनां॒ चक्र॑मन्त॥

English Transliteration

asya mandāno madhvo vajrahasto him indro arṇovṛtaṁ vi vṛścat | pra yad vayo na svasarāṇy acchā prayāṁsi ca nadīnāṁ cakramanta ||

Mantra Audio
Pad Path

अ॒स्य। म॒न्दा॒नः। मध्वः॑। वज्र॑ऽहस्तः। अहि॑म्। इन्द्रः॑। अ॒र्णः॒ऽवृत॑म्। वि। वृ॒श्च॒त्। प्र। यत्। वयः॑। न। स्वस॑राणि। अच्छ॑। प्रयां॑सि। च॒। न॒दीना॑म्। चक्र॑मन्त॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:19» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:23» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:2


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो (यत्) जिससे (वयः) पखेरुओं के (न) समान (स्वसराणि) दिनों को (नदीनां प्रयांसि च) और नदियों के मनोहर स्रोतों को (अच्छ) अच्छे प्रकार (प्रचक्रमन्त) रमते हैं जो (वज्रहस्तः) किरणरूपी हाथोंवाला (अस्य) इस (मध्वः) विशेषकर जानने योग्य जगत् के बीच (मन्दानः) प्राप्त हुआ (इन्द्रः) सूर्य (अर्णोवृतम्) जिसमें जल विद्यमान हैं उस (अहिम्) मेघ को (विवृश्चत्) विभिन्न करता है उसको यथावत् जानो ॥२॥
Connotation: - जैसे पक्षी जाते आते हैं, वैसे रात्रि दिन वर्त्तमान हैं। जैसे सूर्य इस जगत् का आनन्द देनेवाला है, वैसे सज्जनों को वर्त्तना चाहिये ॥२॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यविषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यद्यस्माद्वयो न स्वसराणि नदीनां प्रयांसि चाऽच्छा प्रचक्रमन्त यो वज्रहस्तोऽस्य मध्वो जगतो मध्ये मन्दान इन्द्रोऽर्णोवृतमहिं विवृश्चत् तं यथावद्विजानीत ॥२॥

Word-Meaning: - (अस्य) (मन्दानः) प्राप्तः (मध्वः) विज्ञेयस्य (वज्रहस्तः) किरणपाणिः (अहिम्) मेघम् (इन्द्रः) सूर्य्यः (अर्णोवृतम्) अर्णांसि वर्त्तन्ते यस्मिँस्तम् (वि) (वृश्चत्) वृश्चति (प्र) (यत्) यस्मात् (वयः) पक्षिणः (न) इव (स्वसराणि) दिनानि (अच्छ) सम्यक्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः (प्रयांसि) कमनीयानि श्रोतांसि (च) (नदीनाम्) सरिताम् (चक्रमन्त) रमन्ते ॥२॥
Connotation: - यथा पक्षिणो गच्छन्त्यागच्छन्ति तथैवाहोरात्रा वर्त्तन्ते यथा सूर्योऽस्य जगत आनन्दयितास्ति तथा सज्जनैर्वर्त्तितव्यम् ॥२॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जसे पक्षी जातात येतात तसे रात्र व दिवस आहेत. जसा सूर्य या जगाचा आनंददाता आहे, तसे सज्जनांनी वागावे. ॥ २ ॥