सास्मा॒ अरं॑ प्रथ॒मं स द्वि॒तीय॑मु॒तो तृ॒तीयं॒ मनु॑षः॒ स होता॑। अ॒न्यस्या॒ गर्भ॑म॒न्य ऊं॑ जनन्त॒ सो अ॒न्येभिः॑ सचते॒ जेन्यो॒ वृषा॑॥
sāsmā aram prathamaṁ sa dvitīyam uto tṛtīyam manuṣaḥ sa hotā | anyasyā garbham anya ū jananta so anyebhiḥ sacate jenyo vṛṣā ||
सः। अ॒स्मै॒। अर॑म्। प्र॒थ॒मम्। सः। द्वि॒तीय॑म्। उ॒तो इति॑। तृ॒तीय॑म्। मनु॑षः। सः। होता॑। अ॒न्यस्याः॑। गर्भ॑म्। अ॒न्ये। ऊँ॒ इति॑। ज॒न॒न्त॒। सः। अ॒न्येभिः॑। स॒च॒ते॒। जेन्यः॑। वृषा॑॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे मनुष्य सोऽस्मै प्रथमं स द्वितीयमुतो तृतीयं सचते स मनुषो होता स जेन्यो वृषा सन्नन्यस्या गर्भमरं सचते तमू अन्येभिरन्ये जनन्त ॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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