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स वि॒द्वाँ अ॑पगो॒हं क॒नीना॑मा॒विर्भव॒न्नुद॑तिष्ठत्परा॒वृक्। प्रति॑ श्रो॒णः स्था॒द्व्य१॒॑नग॑चष्ट॒ सोम॑स्य॒ ता मद॒ इन्द्र॑श्चकार॥

English Transliteration

sa vidvām̐ apagohaṁ kanīnām āvir bhavann ud atiṣṭhat parāvṛk | prati śroṇaḥ sthād vy anag acaṣṭa somasya tā mada indraś cakāra ||

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Pad Path

सः। वि॒द्वान्। अ॒प॒ऽगो॒हम्। क॒नीना॑म्। आ॒विः। भव॑न्। उत्। अ॒ति॒ष्ठ॒त्। प॒रा॒ऽवृक्। प्रति॑। श्रो॒णः। स्था॒त्। वि। अ॒नक्। अ॒च॒ष्ट॒। सोम॑स्य। ता। मदे॑। इन्द्रः॑। च॒का॒र॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:15» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सूर्य के दृष्टान्त से विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (श्रोणः) सुननेवाला विद्वान् जन (इन्द्रः) सर्व पदार्थ अलग-अलग करनेवाला सूर्य जैसे (सोमस्य) संसार के बीच (कनीनाम्) कान्तियों के (अपगोहम्) अपगूहन आच्छादन करने को (परावृक्) खोलता (आविर्भवन्) प्रकट होता हुआ (उदतिष्ठत्) ऊपर को स्थिर होता अर्थात् उदय होकर ऊपर को बढ़ता (प्रतिष्ठात्) और प्रतिष्ठा पाता (व्यनक्) पदार्थों को प्रकट करता (अचष्ट) उपदेश करता अर्थात् अपनी गति से यथावत् समय को बतलाता वैसे (मदे) हर्ष के निमित्त (ता) उन कामों को (चकार) करता है (सः) वह सबको सत्कार करने योग्य है ॥७॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे सूर्य्य अपने प्रकाशदान से अन्धकार को निवृत्त कर विचित्र संसार दिखलाता है, वैसे जो विद्वान् जन सत्य विद्या का उपदेश देने से अविद्या को निवृत्त कर विविध पदार्थ विज्ञान को प्रकट करते हैं, वे विश्व के भूषित करनेवाले होते हैं ॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सूर्यदृष्टान्तेन विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

यः श्रोणो विद्वानिन्द्रो यथा सोमस्य मध्ये कनीनामपगोहं परावृगाविर्भवन्नुदतिष्ठत्प्रतिष्ठाद्द्व्यनगचष्ट तथा मदे ता चकार स सर्वैः सत्करणीयः ॥७॥

Word-Meaning: - (सः) (विद्वान्) सकलशास्त्रवित् (अपगोहम्) आच्छादकम् (कनीनाम्) कान्तीनाम् (आविः) प्रकटतया (भवन्) (उत्) उत्कृष्टे (अतिष्ठत्) तिष्ठति (परावृक्) यः परावृणक्ति (प्रति) (श्रोणः) श्रोता (स्थात्) तिष्ठति (वि) (अनक्) प्रकटी करोति (अचष्ट) उपदिशति (सोमस्य) संसारस्य (ता) (मदे) (इन्द्रः) (चकार) ॥७॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा सूर्यः स्वप्रकाशदानेनाऽन्धकारं निवर्त्य विचित्रं जगद्दर्शयति तथा ये विद्वांसः सत्यविद्योपदेशदानेनाऽविद्यां निवर्त्य विविधपदार्थविज्ञानं प्रकटयन्ति ते विश्वभूषका जायन्ते ॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसा सूर्य आपल्या प्रकाशदानाने अंधकार नष्ट करून चमत्कारिक जगाचे दर्शन घडवितो तसे जे विद्वान सत्य विद्येचा उपदेश करून अविद्या नाहीशी करून विविध पदार्थ विज्ञान प्रकट करतात ते विश्वाला भूषणावह असतात. ॥ ७ ॥