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स ईं॑ म॒हीं धुनि॒मेतो॑ररम्णा॒त्सो अ॑स्ना॒तॄन॑पारयत्स्व॒स्ति। त उ॒त्स्नाय॑ र॒यिम॒भि प्र त॑स्थुः॒ सोम॑स्य॒ ता मद॒ इन्द्र॑श्चकार॥

English Transliteration

sa īm mahīṁ dhunim etor aramṇāt so asnātṝn apārayat svasti | ta utsnāya rayim abhi pra tasthuḥ somasya tā mada indraś cakāra ||

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Pad Path

सः। ई॒म्। म॒हीम्। धुनि॑म्। एतोः॑। अ॒र॒म्णा॒त्। सः। अ॒स्ना॒तॄन्। अ॒पा॒र॒य॒त्। स्व॒स्ति। ते। उ॒त्ऽस्नाय॑। र॒यिम्। अ॒भि। प्र। त॒स्थुः॒। सोम॑स्य। ता। मदे॑। इन्द्रः॑। च॒का॒र॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:15» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर (सोमस्य) उत्पन्न जगत् के बीच (ईम्) जल और (धुनिम्) चलती हुई (महीम्) पृथिवी को (अरम्णात्) हन्ता है (सः) वह (अस्नातॄन्) अस्नातक अर्थात् जो यज्ञ स्नान नहीं किये उनके (एतोः) गमन को (स्वस्ति) कल्याण जैसे हो वैसे (अभि, अपारयत्) सब ओर से पार पहुँचाता है जो (ता) उक्त कामों को (मदे) हर्ष के निमित्त (चकार) करता है और जो विद्वान् जन उक्त ईश्वर के निमित्त (उत्स्नाय) उत्तम समाधिस्नान कर (रयिम्) धनको (प्रतस्थुः) प्रस्थित करते फिरते (ते) वे दुःख को छोड़ते वह सबको सेवने योग्य है ॥५॥
Connotation: - जो जगदीश्वर जगत् का रचने वा पालना करने वा हननेवाला और मुक्ति में शुद्धाचरण करनेवालों को दुःख से पार करनेवाला है, जो इस शुद्ध ईश्वर में समाधि से न्हाय (स्नानकर) के पवित्र होते हैं, वे सब जगत् में सब जगह प्रतिष्ठा को प्राप्त होते हैं ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या य इन्द्रः सोमस्येन्धुनिं महीमरम्णात्सोऽस्नातॄनेतोः स्वस्त्यभिरपारयद्यस्ता मदे चकार येऽस्मिन्नुत्स्नाय रयिं प्रतस्थुस्ते दुःखं जहति स सर्वैः सेव्यः ॥५॥

Word-Meaning: - (सः) सूर्य इव परमेश्वरः (ईम्) जलम् (महीम्) पृथिवीम् (धुनिम्) चलिताम् (एतोः) अयनम् (अरम्णात्) हन्ति रम्णातीति वधकर्मा० निघं० २। १९। (सः) (अस्नातॄन्) अस्नातकान् (अपारयत्) पारयति (स्वस्ति) (ते) (उत्स्नाय) स्नानं कृत्वा (रयिम्) द्रव्यम् (अभि) (प्र) (तस्थुः) प्रतिष्ठन्ते (सोमस्य) उत्पन्नस्य जगतो मध्ये (ता) तानि (मदे) (इन्द्रः) (चकार) ॥५॥
Connotation: - यो जगदीश्वरो जगतः स्रष्टा पाता हन्ता मुक्तौ शुद्धाचारान् दुःखात्पारयितास्ति येऽस्मिन् शुद्धे समाधिना निमज्य पवित्रयन्ति ते सर्वत्र प्रतिष्ठाँल्लभन्ते ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जगदीश्वर सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता व हन्ता आहे. मुक्तीमध्ये तो शुभाचरण करणाऱ्यांना दुःखातून पार पाडणारा आहे. जे या शुद्ध ईश्वरात समाधीमध्ये न्हाऊन पवित्र होतात ते या जगात सर्व स्थानी प्रतिष्ठा प्राप्त करतात. ॥ ५ ॥