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सद्मे॑व॒ प्राचो॒ वि मि॑माय॒ मानै॒र्वज्रे॑ण॒ खान्य॑तृणन्न॒दीना॑म्। वृथा॑सृजत्प॒थिभि॑र्दीर्घया॒थैः सोम॑स्य॒ ता मद॒ इन्द्र॑श्चकार॥

English Transliteration

sadmeva prāco vi mimāya mānair vajreṇa khāny atṛṇan nadīnām | vṛthāsṛjat pathibhir dīrghayāthaiḥ somasya tā mada indraś cakāra ||

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Pad Path

सद्म॑ऽइव। प्राचः॑। वि। मि॒मा॒य॒। मानैः॑। वज्रे॑ण। खानि॑। अ॒तृ॒ण॒त्। न॒दीना॑म्। वृथा॑। अ॒सृ॒ज॒त्। प॒थिऽभिः॑। दी॒र्घ॒ऽया॒थैः। सोम॑स्य। ता। मदे॑। इन्द्रः॑। च॒का॒र॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:15» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो जो (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर (मानैः) परिमाणों से (सद्मेव) घर के समान (प्राचः) प्राचीन लोकों को (विमियाय) निर्माण करता बनाता है, (नदीनाम्) अव्यक्तशब्दयुक्त नदियों के (खानि) खातों को अर्थात् जलस्थानों को (वज्रेण) विज्ञान से (अतृणत्) विस्तारता (दीर्घयाथैः) जिनमें दीर्घ बड़े-बड़े गमन चालें उन (पथिभिः) मार्गों के साथ सब लोकों को (वृथा) वृथा (असृजत्) रचता (सोमस्य) उत्पन्न हुए जगत् के (मदे) हर्ष के निमित्त (ता) उन उक्त कर्मों को (चकार) करता है, वह जगत् का निर्माण करनेवाला दयालु ईश्वर जानना चाहिये ॥३॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जिस ईश्वर से पूर्व कल्प की रीति से और परमाणुओं से लोक-लोकान्तरों का निर्माण किया जाता है, जिसका अपना प्रयोजन केवल परोपकार को छोड़कर और कुछ भी नहीं है, उस जगदीश्वर के उक्त काम धन्यवाद के योग्य हैं, उनका तुम स्मरण करो ॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या य इन्द्रो जगदीश्वरो मानैः सद्मेव प्राचो विमियाय नदीनां खानि वज्रेणातृणद्दीर्घयाथैः पथिभिस्सह सर्वांल्लोकान्वृथासृजत् सोमस्य मदे ता चकार स जगन्निर्माता दयालुरीश्वरो वेद्यः ॥३॥

Word-Meaning: - (सद्मेव) गृहमिव (प्राचः) प्राचीनाँल्लोकान् (वि) (मिमाय) मिमीते (मानैः) परिमाणैः (वज्रेण) विज्ञानेन (खानि) खातानि (अतृणत्) सन्तारयति। अत्र व्यत्ययेन श्ना (नदीनाम्) अव्यक्तशब्दयुक्तानां सरिताम् (वृथा) (असृजत्) (पथिभिः) मार्गैः (दीर्घयाथैः) दीर्घा यथा गमनानि येषु तैः (सोमस्य) उत्पद्यमानस्य (ता) तानि (मदे) हर्षे (इन्द्रः) (चकार) करोति ॥३॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ, हे मनुष्या ! येन जगदीश्वरेण प्राक्कल्पनारीत्या परमाणुभिश्च लोकलोकान्तराणि निर्मीयन्ते यस्य स्वकीयं प्रयोजनं परोपकारं विहाय किंचिदपि नास्ति तानि जगदीश्वरस्य धन्यवादार्हाणि कर्माणि यूयं सततं स्मरत ॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. ज्या ईश्वराकडून पूर्वकल्पाप्रमाणे परमाणूंद्वारे लोकलोकान्तरांची निर्मिती केली जाते, त्याचे प्रयोजन केवळ परोपकार असून दुसरे काही नाही. त्या जगदीश्वराचे वरील काम धन्यवाद देण्यायोग्य असून त्याचे तुम्ही स्मरण करा. ॥ ३ ॥