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यो ना॑र्म॒रं स॒हव॑सुं॒ निह॑न्तवे पृ॒क्षाय॑ च दा॒सवे॑शाय॒ चाव॑हः। ऊ॒र्जय॑न्त्या॒ अप॑रिविष्टमा॒स्य॑मु॒तैवाद्य पु॑रुकृ॒त्सास्यु॒क्थ्यः॑॥

English Transliteration

yo nārmaraṁ sahavasuṁ nihantave pṛkṣāya ca dāsaveśāya cāvahaḥ | ūrjayantyā apariviṣṭam āsyam utaivādya purukṛt sāsy ukthyaḥ ||

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Pad Path

यः। ना॒र्म॒रम्। स॒हऽव॑सुम्। निऽह॑न्तवे। पृ॒क्षाय॑। च॒। दा॒सऽवे॑शाय॒। च॒। अव॑हः। ऊ॒र्जय॑न्त्याः। अप॑रिऽविष्टम्। आ॒स्य॑म्। उ॒त। ए॒व। अ॒द्य। पु॒रु॒ऽकृ॒त्। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:13» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यः) जो (पुरुकृत्) बहुत वस्तुओं को करनेवाला सेनापति विद्वान् (दासवेशाय) जिसमें सेवक प्रवेश करते उसके लिये और (पृक्षाय) सेचन करने के लिये (च) भी (सहवसुम्) धनादि पदार्थों के साथ वर्त्तमान (नार्मरम्) मनुष्यों को मरवा देनेवाले पवन सम्बन्धि अग्नि को (अवहः) प्राप्त होता है जिससे (आस्यम्) मुख (अपरिविष्टम्) परिवेष परसने के कर्म से रहित हुआ हो (उत) और (ऊर्जयन्त्याः) बलवती सामग्रियों में उत्तम जल (च) भी विद्यमान है (सः,एव) वही सेनापति (अद्य) आज (उक्थ्यः) कथनीय पदार्थों में (असि) है, यह तुम लोग जानो ॥८॥
Connotation: - जो राजजन भृत्यों को और सेवकों को श्रेष्ठ भोजनादिक देकर आनन्दित करते हैं, वे स्तुति सेवनेवाले होकर बहुत भोगों को प्राप्त होते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या यः पुरुकृत् सेनेशः दासवेशाय पृक्षाय च सहवसुं नार्मरमवहः येनास्यपरिविष्टमुतापि ऊर्जयन्त्या आपश्च स एवाद्योक्थ्योऽसीति यूयं विजानीत ॥८॥

Word-Meaning: - (यः) (नार्मरम्) नॄन्मारयति स वायुस्तस्याऽयं सम्बन्ध्यग्निस्तम् (सहवसुम्) वसुभिस्सह वर्त्तमानम् (निहन्तवे) नितरां हन्तुम् (पृक्षाय) सेचनाय (च) (दासवेशाय) दासाः सेवका विशन्ति यस्मिँस्तस्मै (च) (अवहः) वहति प्राप्नोति (ऊर्जयन्त्याः) ऊर्जयन्तीषु बलयन्तीषु साध्यः (अपरिविष्टम्) परिवेषरहितम् (आस्यम्) मुखम् (उत) अपि (एव) (अद्य) अस्मिन् दिने (पुरुकृत्) यः पुरूणि बहूनि वस्तूनि करोति सः (सः) (असि) अस्ति (उक्थ्यः) ॥८॥
Connotation: - ये राजजना भृत्यान् सेवकांश्चेष्टं भोजनादिकं दत्वा नन्दयन्ति ते स्तुतिभाजो भूत्वा बहून् भोगाँल्लभन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे राजे सेवकांना व नोकरांना उत्तम भोजन देऊन आनंदित करतात ते स्तुतिपात्र असून त्यांना पुष्कळ भोग प्राप्त होतात. ॥ ८ ॥