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अर॑मयः॒ सर॑पस॒स्तरा॑य॒ कं तु॒र्वीत॑ये च व॒य्या॑य च स्रु॒तिम्। नी॒चा सन्त॒मुद॑नयः परा॒वृजं॒ प्रान्धं श्रो॒णं श्र॒वय॒न्त्सास्यु॒क्थ्यः॑॥

English Transliteration

aramayaḥ sarapasas tarāya kaṁ turvītaye ca vayyāya ca srutim | nīcā santam ud anayaḥ parāvṛjam prāndhaṁ śroṇaṁ śravayan sāsy ukthyaḥ ||

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Pad Path

अर॑मयः। सर॑ऽअपसः। तरा॑य। कम्। तु॒र्वीत॑ये। च॒। व॒य्या॑य। च॒। स्रु॒तिम्। नी॒चा। सन्त॑म्। उत्। अ॒न॒यः॒। प॒रा॒ऽवृज॑म्। प्र। अ॒न्धम्। श्रो॒णम्। श्र॒वय॑न्। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:13» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:12» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! आप (सरपसः) जिससे पाप चलाये जाते हैं (तराय) उसके उल्लंघन और (तुर्वीतये) साधनों से व्याप्त होने के लिये (च) और (वय्याय) सूत के विस्तार के लिये (च) भी (स्रुतिम्) नाना प्रकार की चाल को जताइये और (परावृजम्) लौट गये हैं त्याग करनेवाले जिससे उस मनुष्य को (प्रान्धम्) अत्यन्त अन्धे वा (श्रोणम्) बहिरे के समान (श्रवयन्) सुनाते हुए (नीचा) नीच व्यवहार से (सन्तम्) विद्यमान मनुष्य को उत्तम व्यवहार में (अरमयः) रमाते हैं तथा सबकी (उदनयः) उन्नति करते हो इस कारण (सः) वह आप (उक्थ्यः) प्रशंसनीय (असि) हैं ॥१२॥
Connotation: - जैसे शिल्पवेत्ता विद्वान् जन औरों को शिल्पविद्या के दान से उत्कृष्ट करते हुए अन्धे को देखते हुए के समान वा बहिरे को श्रवण करनेवाले के समान बहुश्रुत करते हैं, वे इस संसार में पूज्य होते हैं ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वँस्त्वं सरपसस्तराय तुर्वीतये च वय्याय च कं स्रुतिं बोधाय परावृजं प्रान्धं श्रोणमिव श्रवयन् नीचा सन्तमुत्तमे व्यवहारेऽरमय सर्वान्नुदनयोऽस्मात्स त्वमुक्थ्योऽसि ॥१२॥

Word-Meaning: - (अरमयः) रमयसि (सरपसः) सराणि सृतान्यपांसि पापानि येन तस्य (तराय) उल्लङ्घकाय (कम्) सुखम् (तुर्वीतये) साधनैर्व्याप्तये (च) (वय्याय) तन्तुसन्तानकाय (च) (स्रुतिम्) विविधां गतिम् (नीचा) नीचेन (सन्तम्) (उत्) (अनयः) उन्नेयः (परावृजम्) परागता वृजस्त्यागकारा यस्मात्तम् (प्र) (अन्धम्) चक्षुर्विहीनम् (श्रोणम्) बधिरम् (श्रवयन्) श्रवणं कारयन् (सः) (असि) (उक्थ्यः) ॥१२॥
Connotation: - यथा शिल्पविदोऽन्याञ्छिल्पविद्यादानेनोत्कृष्टान्सम्पादयन्तोऽन्धं चक्षुष्मन्तमिव संप्रेक्षकान् बधिरं श्रुतिमन्तमिव बहुश्रुतान् कुर्य्युस्तेऽस्मिञ्जगति पूज्याः स्युः ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे शिल्पवेत्ते विद्वान लोक इतरांना शिल्पविद्येने समृद्ध करतात, ते आंधळ्याला डोळस व बहिऱ्याला बहुश्रुत करतात तेच या जगात पूज्य असतात. ॥ १२ ॥