Go To Mantra

विश्वेदनु॑ रोध॒ना अ॑स्य॒ पौंस्यं॑ द॒दुर॑स्मै दधि॒रे कृ॒त्नवे॒ धन॑म्। षळ॑स्तभ्ना वि॒ष्टिरः॒ पञ्च॑ सं॒दृशः॒ परि॑ प॒रो अ॑भवः॒ सास्यु॒क्थ्यः॑॥

English Transliteration

viśved anu rodhanā asya pauṁsyaṁ dadur asmai dadhire kṛtnave dhanam | ṣaḻ astabhnā viṣṭiraḥ pañca saṁdṛśaḥ pari paro abhavaḥ sāsy ukthyaḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

विश्वा॑। इत्। अनु॑। रो॒ध॒नाः। अ॒स्य॒। पौंस्य॑म्। द॒दुः। अ॒स्मै॒। द॒धि॒रे। कृ॒त्नवे॑। धन॑म्। षट्। अ॒स्त॒भ्नाः॒। वि॒ऽस्तिरः॑। पञ्च॑। स॒म्ऽदृशः॑। परि॑। प॒रः। अ॒भ॒वः॒। सः। अ॒सि॒। उ॒क्थ्यः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:13» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:11» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:10


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर प्रकारान्तर से विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - मनुष्य (अस्मै) इस (कृत्नवे) कर्म करनेवाले मनुष्य के लिये (षट्,विष्टिरः) छः जो विशेषता से अपने-अपने समय को पार होती हैं वे तुयें (पञ्च) और पाँच (संदृशः) अपने-अपने विषय को देखनेवाले पृथिवी, अप्, तेज, वायु, आकाश ये भूत वा पाँच कर्मेन्द्रियाँ (विश्वा) सब (रोधना) रुकावटों को (अनुददुः) अनुकूलता से देते हैं और (धनम्) धन को (इत्) ही (परि, दधिरे) सब ओर से धारण करते हैं (अस्य) इसके (पौंस्यम्) पुरुषार्थ को अनुकूलता से धारण करते अर्थात् जानते हैं वह (परः) उत्कृष्ट धन को (अस्तभ्नाः) रोकता है और (अभवः) प्रसिद्ध होता है (सः) वह (उक्थ्यः) अनेक में प्रशंसनीय (असि) है ॥१०॥
Connotation: - जो मनुष्य युक्त आहार-विहार करनेवाले जितेन्द्रिय होते हैं, वे सब तुओं में पाँचों इन्द्रियों से सुखों को प्राप्त होते हैं ॥१०॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः प्रकारान्तरेण विद्वद्विषयमाह।

Anvay:

मनुष्या अस्मै कृत्नवे जनाय षड् विष्टिरः पञ्च संदृशः विश्वा रोधना अनु ददुः धनमित्परि दधिरेऽस्य पौंस्यमनुदधिरे स परो धनमस्तभ्ना अभवः स उक्थ्योऽस्यस्ति ॥१०॥

Word-Meaning: - (विश्वा) सर्वाणि (इत्) एव (अनु) आनुकूल्ये (रोधना) रोधनानि (अस्य) जनस्य (पौंस्यम्) पुरुषार्थम् (ददुः) ददति (अस्मै) (दधिरे) दधति (कृत्नवे) कर्त्तुम् (धनम्) (षट्) (अस्तभ्नाः) स्तभ्नाति (विष्टिरः) ये विशेषेण तरन्ति ते तवः (पञ्च) भूतानि (संदृशः) ये सम्यक् पश्यन्ति ते (परि) सर्वतः (परः) प्रकृष्टः (अभवः) प्रसिद्धो भवसि (सः) (असि) (उक्थ्यः) ॥१०॥
Connotation: - ये मनुष्या युक्ताहारविहारा जितेन्द्रिया जायन्ते ते सर्वेष्वृतुषु पञ्चभिरिन्द्रियैः सुखानि प्राप्नुवन्ति ॥१०॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जी माणसे युक्त आहार विहार करून जितेन्द्रिय बनतात ती सर्व ऋतूत पंच इंद्रियांच्या सुखांना प्राप्त करतात. ॥ १० ॥