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यः शम्ब॑रं॒ पर्व॑तेषु क्षि॒यन्तं॑ चत्वारिं॒श्यां श॒रद्य॒न्ववि॑न्दत्। ओ॒जा॒यमा॑नं॒ यो अहिं॑ ज॒घान॒ दानुं॒ शया॑नं॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥

English Transliteration

yaḥ śambaram parvateṣu kṣiyantaṁ catvāriṁśyāṁ śarady anvavindat | ojāyamānaṁ yo ahiṁ jaghāna dānuṁ śayānaṁ sa janāsa indraḥ ||

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Pad Path

यः। शम्ब॑रम्। पर्व॑तेषु। क्षि॒यन्त॑म्। च॒त्वा॒रिं॒श्याम्। श॒रदि॑। अ॒नु॒ऽअवि॑न्दत्। ओ॒जा॒यमा॑नम्। यः। अहि॑म्। ज॒घान॑। दानु॑म्। शया॑नम्। सः। ज॒ना॒सः॒। इन्द्रः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:12» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:2» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (जनासः) बुद्धिमान् मनुष्यो ! तुमको (यः) जो (पर्वतेषु) बद्दलों में (चत्वारिंश्याम्) चालीसवीं (शरदि) शरद तु में (क्षियन्तम्) निवास करते हुए (शम्बरम्) मेघ को (अन्वविन्दत्) अनुकूलता से प्राप्त होता और (यः) जो (दानुम्) देनेवाले (शयानम्) तथा सोते हुए के समान वर्त्तमान (अहिम्) मेघ को (जघान) मारता है (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सूर्य जानना चाहिये ॥११॥
Connotation: - जो चालीस वर्ष पर्यन्त वर्षा न हो तो कौन प्राण धर सके। जो सूर्य जल को न खींचे, न धारण करे और न वर्षावे तो कौन बल पाने को योग्य हो ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे जनासो धीमन्तो युष्माभिर्यः पर्वतेषु चत्वारिंश्यां शरदि क्षियन्तं शम्बरमन्वविन्दद्यो दानुं शयानमोजायमानमहिं जघान स इन्द्रो बोध्यः ॥११॥

Word-Meaning: - (यः) (शम्बरम्) मेघम् (पर्वतेषु) अभ्रेषु (क्षियन्तम्) निवसन्तम् (चत्वारिंश्याम्) चत्वारिंशतः पूर्णायाम् (शरदि) शरदृतौ (अन्वविन्दत्) अनुलभते (ओजायमानम्) ओजः पराक्रममिवाचरन्तम् (यः) (अहिम्) मेघम् (जघान) हन्ति (दानुम्) दातारम् (शयानम्) कृतशयनमिव वर्त्तमानम् (सः) (जनासः) इन्द्रः ॥११॥
Connotation: - यदि चत्वारिंशद्वर्षाणि वृष्टिर्न स्यात्तर्हि कः प्राणं धर्त्तुं शक्नुयात्। यदि सूर्यो जलं नाकर्षेन्न धरेन्न वर्षयेत्तर्हि को बलं प्राप्तुमर्हेत् ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - चाळीस वर्षांपर्यंत वृष्टी न झाल्यास कुणाचा प्राण तग धरू शकेल? जर सूर्य जलाला आकर्षित करू शकणार नसेल व वृष्टी करू शकणार नसेल तर कुणाला बल प्राप्त होईल? ॥ ११ ॥