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नि पर्व॑तः सा॒द्यप्र॑युच्छ॒न्त्सं मा॒तृभि॑र्वावशा॒नो अ॑क्रान्। दू॒रे पा॒रे वाणीं॑ व॒र्धय॑न्त॒ इन्द्रे॑षितां ध॒मनिं॑ पप्रथ॒न्नि॥

English Transliteration

ni parvataḥ sādy aprayucchan sam mātṛbhir vāvaśāno akrān | dūre pāre vāṇīṁ vardhayanta indreṣitāṁ dhamanim paprathan ni ||

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Pad Path

नि। पर्व॑तः। सा॒दि॒। अप्र॑ऽयुच्छन्। सम्। मा॒तृऽभिः॑। वा॒व॒शा॒नः। अ॒क्रा॒न्। दू॒रे। पा॒रे। वाणी॑म्। व॒र्धय॑न्तः। इन्द्र॑ऽइषिताम्। ध॒मनि॑म्। प॒प्र॒थ॒न्। नि॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:11» Mantra:8 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - जो (मातृभिः) मान करनेवाली माता आदि से (वावशानः) कामना किया जाता और (अप्रयुच्छन्) प्रमाद न करता हुआ (पर्वतः) मेघ के समान विद्वानों ने (सम्,सादि) अच्छे प्रकार सिद्ध किया उसके साथ जो दोषों को (दूरे) दूर करते हुए (वाणीम्) सुन्दर शिक्षायुक्त वाणी को (पारे) समुद्र की भूमियों के परभाग में (वर्द्धयन्तः) बढ़ाते हुए औरों को विद्वान् (अक्रान्) करते हैं वे (इन्द्रेषिताम्) परमेश्वर की भेजी हुई वेदवाणी का (नि,पप्रथन्) निरन्तर विस्तार करें ॥८॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिन सन्तानों को माता उत्तम शिक्षा और विद्या से प्रमादरहित कर बढ़ाती हैं, वे सुखों को प्राप्त होकर सब ओर से बढ़ते हैं ॥८॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

यो मातृभिर्वावशानोऽप्रयुच्छन् पर्वतइव विद्वद्भिः संसादि तेन सह ये दोषान्दूरे कृर्वन्तो वाणीं पारे वर्द्धयन्तोऽन्यान् विदुषो न्यक्रांस्त इन्द्रेषितां धमनिं नि पप्रथन् ॥८॥

Word-Meaning: - (नि) नितराम् (पर्वतः) मेघ इव (सादि) सम्पादते (अप्रयुच्छन्) प्रमादमकुर्वन् (सम्) (मातृभिः) मान्यकर्त्रीभिः (वावशानः) कामयमानः (अक्रान्) कुर्वन्ति (दूरे) विप्रकृष्टदेशे (पारे) समुद्रभूमिपरभागे (वाणीम्) सुशिक्षितां वाचम् (वर्द्धयन्तः) (इन्द्रेषिताम्) इन्द्रेण परमेश्वरेण प्रेषिताम् (धमनिम्) वेदवाणीम्। धमनिरिति वाङ्ना० निघं०१। ११ (पप्रथन्) (विस्तारयेयुः) (नि) नित्यम् ॥८॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यान् सन्तानान् मातरः सुशिक्षया विद्यया प्रमादरहितान् कृत्वा वर्द्धयन्ति ते सुखानि प्राप्य सर्वतो वर्द्धन्ते ॥८॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्या संतानांना माता उत्तम शिक्षणाने व विद्येने प्रमादरहित करून वाढविते ते सुखी होऊन पूर्णतः वाढतात. ॥ ८ ॥