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त्वे इ॒न्द्राप्य॑भूम॒ विप्रा॒ धियं॑ वनेम ऋत॒या सप॑न्तः। अ॒व॒स्यवो॑ धीमहि॒ प्रश॑स्तिं स॒द्यस्ते॑ रा॒यो दा॒वने॑ स्याम॥

English Transliteration

tve indrāpy abhūma viprā dhiyaṁ vanema ṛtayā sapantaḥ | avasyavo dhīmahi praśastiṁ sadyas te rāyo dāvane syāma ||

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Pad Path

त्वे इति॑। इ॒न्द्र॒। अपि॑। अ॒भू॒म॒। विप्राः॑। धिय॑म्। व॒ने॒म॒। ऋ॒त॒ऽया। सप॑न्तः। अ॒व॒स्यवः॑। धी॒म॒हि॒। प्रऽश॑स्तिम्। स॒द्यः। ते॒। रा॒यः। दा॒वने॑। स्या॒म॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:11» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब वैद्य विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) रोग विदीर्ण करनेवाले वैद्य विद्वान् जन ! (त्वे) आपके समीप में हम लोग भी (विप्राः) मेधावी (अभूम) हों और (तया) सत्य विज्ञानयुक्त बुद्धि क्रिया से (सपन्तः) दुष्टों को अच्छे प्रकार कोशते हुए (धियम्) बुद्धि वा कर्म को (वनेम) अच्छे प्रकार सेवें तथा (अवस्यवः) अपने को रक्षा चाहते हुए हम लोग (प्रशस्तिम्) प्रशंसा को (धीमहि) धारण करें वा पुष्ट करें और (ते) आप जो (रायः) विद्याधन के (दावने) देनेवाले हैं, उनके लिये (सद्यः) शीघ्र प्रसिद्ध होवें ॥१२॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि सत्य विज्ञानयुक्त बुद्धि से ओषधिविद्या को जान इन ओषधियों का सेवन कर पुरुषार्थ बढ़ा लक्ष्मी का सञ्चय करें ॥१२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ पुनर्वैद्यविद्वद्विषयमाह।

Anvay:

हे इन्द्र त्वे वयं विश अप्यभूम तया सपन्तो धियं च वनेमावस्यवो वयं प्रशस्तिं धीमहि ते रायो दावने सद्यः स्याम ॥१२॥

Word-Meaning: - (त्वे) त्वयि (इन्द्र) रोगविदारक (अपि) (अभूम) भवेम (विप्राः) मेधाविनः (धियम्) प्रज्ञां कर्म वा (वनेम) (सम्भजेम) (तया) सत्यविज्ञानयुक्तया (सपन्तः) दुष्टानाक्रोशन्तः (अवस्यवः) आत्मनोऽवो रक्षणमिच्छवः (धीमहि) धरेम (प्रशस्तिम्) प्रशंसाम् (सद्यः) (ते) तुभ्यम् (रायः) विद्याधनस्य (दावने) दात्रे (स्याम) भवेम ॥१२॥
Connotation: - मनुष्यैर्तंभरया प्रज्ञया ओषधिविद्यां विदित्वैता ओषधीः संसेव्य पुरुषार्थं कृत्वा श्रीर्धर्त्तव्या ॥१२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी सत्य विज्ञानयुक्त बुद्धीने औषधी विद्या जाणून या औषधींचे सेवन करावे व पुरुषार्थ वाढवून लक्ष्मीचा संचय करावा. ॥ १२ ॥