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पिबा॑पि॒बेदि॑न्द्र शूर॒ सोमं॒ मन्द॑न्तु त्वा म॒न्दिनः॑ सु॒तासः॑। पृ॒णन्त॑स्ते कु॒क्षी व॑र्धयन्त्वि॒त्था सु॒तः पौ॒र इन्द्र॑माव॥

English Transliteration

pibā-pibed indra śūra somam mandantu tvā mandinaḥ sutāsaḥ | pṛṇantas te kukṣī vardhayantv itthā sutaḥ paura indram āva ||

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Pad Path

पिब॑ऽपिब। इत्। इ॒न्द्र॒। शू॒र॒। सोम॑म्। मन्द॑न्तु। त्वा। म॒न्दिनः॑। सु॒तासः॑। पृ॒णन्तः॑। ते॒। कु॒क्षी इति॑। व॒र्ध॒य॒न्तु॒। इ॒त्था। सु॒तः। पौ॒रः। इन्द्र॑म्। आ॒व॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:11» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब वैद्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (शूर) रोगों को नष्ट करनेवाले (इन्द्र) आयुर्वेद विद्यायुक्त वैद्य ! जो (मन्दिनः) प्रशंसा करने योग्य (सुतासः) ओषधियों के निकाले हुए रस (सोमम्) सोमलतादि ओषधियों के सार को पीनेवाले (त्वा) आपको (पृणन्तः) सुखी करते हुए (ते) आपकी (कुक्षी) कोखों की (वर्द्धयन्तु) वृद्धि करें और आपको (मदन्तु) हर्षित करावें उनको आप (इत्) ही (पिबापिब) पिओ पिओ (इत्था) इस हेतु से (सुतः) प्रसिद्धः (पौरः) पुर में उत्पन्न हुए आप (इन्द्रम्) ऐश्वर्य की (आव) रक्षा करो ॥११॥
Connotation: - मनुष्य लोग यदि पुष्टि और बुद्धि देनेवाले रोगविनाशक ओषधियों के सार को सेवन करते हैं तो पुरुषार्थी होकर ऐश्वर्य को बढ़ा सकते हैं ॥११॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वैद्यविषयमाह।

Anvay:

हे शूरेन्द्र ये मन्दिनः सुतासः सोमं त्वा पृणन्तस्ते कुक्षी वर्द्धयन्तु त्वा मन्दन्तु ताँस्त्वमित्पिबेत्था सुतः पौरस्त्वमिन्द्रमाव ॥११॥

Word-Meaning: - (पिबापिब) भृशं पिबति। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः (इत्) एव (इन्द्र) आयुर्वेदविद्यायुक्त (शूर) रोगाणां हिंसक (सोमम्) सोमलताद्योषधिसारपातारम् (मन्दतु) हर्षयन्तु (त्वा) त्वाम् (मन्दिनः) स्तोतुमर्हाः (सुतासः) निष्पादिता रसाः (पृणन्तः) सुखयन्तः (ते) तव (कुक्षी) उदरपार्श्वौ (वर्द्धयन्तु) (इत्था) अनेन हेतुना (सुतः) निष्पन्नः (पौरः) पुरि भवः (इन्दम्) ऐश्वर्यम् (आव) रक्ष ॥११॥
Connotation: - मनुष्यैर्यदि पुष्टिबुद्धिप्रदा रोगविनाशिन ओषधिसाराः सेव्यन्ते, तर्हि ते पुरुषार्थिनो भूत्वैश्वर्यं वर्द्धयितुं शक्नुवन्ति ॥११॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - भावार्थ -माणसांनी जर पुष्टी व वृद्धी करणाऱ्या रोगविनाशक औषधींचे सार सेवन केले तर ते पुरुषार्थी बनून ऐश्वर्य वाढवू शकतात. ॥ ११ ॥