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श्रु॒धी हव॑मिन्द्र॒ मा रि॑षण्यः॒ स्याम॑ ते दा॒वने॒ वसू॑नाम्। इ॒मा हि त्वामूर्जो॑ व॒र्धय॑न्ति वसू॒यवः॒ सिन्ध॑वो॒ न क्षर॑न्तः॥

English Transliteration

śrudhī havam indra mā riṣaṇyaḥ syāma te dāvane vasūnām | imā hi tvām ūrjo vardhayanti vasūyavaḥ sindhavo na kṣarantaḥ ||

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Pad Path

श्रु॒धि। हव॑म्। इ॒न्द्र॒। मा। रि॒ष॒ण्यः॒। स्याम॑। ते॒। दा॒वने॑। वसू॑नाम्। इ॒माः। हि। त्वाम्। ऊर्जः॑। व॒र्धय॑न्ति। व॒सु॒ऽयवः॑। सिन्ध॑वः। न। क्षर॑न्तः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:11» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इक्कीस ॠचावाले ग्यारहवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजधर्म का वर्णन करते हैं।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) बिजुली के समान प्रचण्ड प्रतापवाले राजन् ! जिन (त्वा) आपको (वसूनाम्) प्रथम कक्षा के विद्वान् वा पृथिवी आदि के (हि) निश्चय के साथ (इमाः) ये (ऊर्जः) पराक्रम वा अन्नादि पदार्थ और (वसूयवः) अपने को धनों की इच्छा करनेवाले (क्षरन्तः) कम्पित करते और चेष्टावान् करते हुए (सिन्धवः) समुद्रों के (न) समान (वर्द्धयन्ति) बढ़ाते हैं जिन (ते) आपके (दावने) दान के लिये हम (स्याम) हों सो आप हम लोगों को (मा,रिषण्यः) मत मारिये और (हवम्) शास्त्रबोधजन्य शब्द (श्रुधि) सुनिये ॥१॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे समुद्र जल से सबको बढ़ाता है, वैसे प्रधान पुरुषों को चाहिये कि अपने आश्रित सब जनों को दान और मान से बढ़ावें ॥१॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजधर्ममाह।

Anvay:

हे इन्द्र यं त्वां वसूनां हीमा ऊर्जो वसूयवश्च क्षरन्तः सिन्धवो न वर्द्धयन्ति यस्य ते दावने वयं स्याम स त्वमस्मान् मा रिषण्यो हवञ्च श्रुधि ॥१॥

Word-Meaning: - (श्रुधि) शृणु। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (हवम्) शास्त्रबोधजन्यं शब्दम् (इन्द्र) विद्युदिव वर्त्तमान (मा) निषेधे (रिषण्यः) हिंस्या (स्याम) भवेम (ते) तव (दावने) दानाय (वसूनाम्) प्रथमकल्पानां विदुषां पृथिव्यादीनां वा (इमाः) वक्ष्यमाणाः (हि) खलु (त्वाम्) (ऊर्जः) पराक्रमा अन्नादयो वा (वर्द्धयन्ति) (वसूयवः) आत्मनो वसूनीच्छन्तः (सिन्धवः) समुद्राः (न) इव (क्षरन्तः) ॥१॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा समुद्रः जलेन सर्वं वर्द्धयन्ति तथा प्रधानैः पुरुषैः स्वाश्रिताः सर्वे दानेन मानेन च वर्द्धनीयाः ॥१॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात राजधर्म, विद्वान व सेनापतीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा समुद्र जलाने सर्वांना वाढवितो तसे मुख्य पुरुषांनी आपल्या आश्रित असलेल्या सर्व लोकांना दान व मान यांनी वाढवावे. ॥ १ ॥