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जिघ॑र्म्य॒ग्निं ह॒विषा॑ घृ॒तेन॑ प्रतिक्षि॒यन्तं॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑। पृ॒थुं ति॑र॒श्चा वय॑सा बृ॒हन्तं॒ व्यचि॑ष्ठ॒मन्नै॑ रभ॒सं दृशा॑नम्॥

English Transliteration

jigharmy agniṁ haviṣā ghṛtena pratikṣiyantam bhuvanāni viśvā | pṛthuṁ tiraścā vayasā bṛhantaṁ vyaciṣṭham annai rabhasaṁ dṛśānam ||

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Pad Path

जिघ॑र्मि। अ॒ग्निम्। ह॒विषा॑। घृ॒तेन॑। प्र॒ति॒ऽक्षि॒यन्त॑म्। भुव॑नानि। विश्वा॑। पृ॒थुम्। ति॒र॒श्चा। वय॑सा। बृ॒हन्त॑म्। व्यचि॑ष्ठम्। अन्नैः॑। र॒भ॒सम्। दृशा॑नम्॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:10» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:6» Varga:2» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे विद्वन् ! जैसे (विश्वा) समग्र (भुवनानि) जिनमें प्राणी उत्पन्न होते हैं उन लोकों और (प्रतिक्षियन्तम्) पदार्थ-पदार्थ के प्रति वसते हुए (तिरश्चा) तिरछे सब पदार्थों में वांकेपन से रहनेवाले (वयसा) मनोहर जीवन के साथ (पृथुम्) बढ़े हुए (बृहन्तम्) वा बढ़ते हुए (व्यचिष्ठम्) अतीव सब पदार्थों में व्याप्त और (अन्नैः) पृथिव्यादिकों के साथ (रसभम्) वेगवान् (दृशानम्) देखा जाता वा अपने से अन्य पदार्थों को दिखानेवाले (अग्निम्) अग्नि को मैं (हविषा) होमने योग्य सुगन्धि आदि पदार्थ वा (घृतेन) घी से मैं (जिघर्मि) प्रदीप्त करता हूँ, वैसे आप भी कीजिये ॥४॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो मनुष्य समस्त मूर्तिमान् पदार्थों में ठहरे हुए बिजुलीरूप अग्नि को साधनों से अच्छे प्रकार ग्रहण कर इसमें सुगन्धि आदि पदार्थ का होम करते हैं, वे अनन्त सुख को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे विद्वन् यथा विश्वा भुवनानि प्रतिक्षियन्तं तिरश्चा वयसा सह पृथुं बृहन्तं व्यचिष्ठमन्नैस्सह रभसं दृशानमग्निं हविषा घृतेन सह जिघर्मि तथैतं त्वं कुरु ॥४॥

Word-Meaning: - (जिघर्मि) (अग्निम्) (हविषा) होतुमर्हेण सुगन्ध्यादियुक्तेन (घृतेन) आज्येन (प्रतिक्षियन्तम्) पदार्थं पदार्थं प्रतिवसन्तम् (भुवनानि) भवन्ति भूतानि येषु तानि (विश्वा) समग्राणि (पृथुम्) विस्तीर्णम् (तिरश्चा) तिरश्चीनेन (वयसा) कमनीयेन जीवनेन सह (बृहन्तम्) वर्द्धमानम् (व्यचिष्ठम्) अतिशयेन व्याप्तम् (अन्नैः) पृथिव्यादिभिः सह (रभसम्) वेगवन्तम् (दृशानम्) दृश्यमानं दर्शयितारं वा ॥४॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या सर्वमूर्त्तद्रव्यस्थां विद्युत्साधनैः संगृह्यात्र सुगन्ध्यादिद्रव्यं जुह्वति तेऽनन्तं सुखमाप्नुवन्ति ॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे संपूर्ण मूर्तिमान पदार्थात स्थित असलेली विद्युत अग्नीरूपी साधने संग्रहित करून सुगंधी पदार्थांचा होम करतात ती अनंत सुख भोगतात. ॥ ४ ॥