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त्वम॑ग्ने रु॒द्रो असु॑रो म॒हो दि॒वस्त्वं शर्धो॒ मारु॑तं पृ॒क्ष ई॑शिषे। त्वं वातै॑ररु॒णैर्या॑सि शंग॒यस्त्वं पू॒षा वि॑ध॒तः पा॑सि॒ नु त्मना॑॥

English Transliteration

tvam agne rudro asuro maho divas tvaṁ śardho mārutam pṛkṣa īśiṣe | tvaṁ vātair aruṇair yāsi śaṁgayas tvam pūṣā vidhataḥ pāsi nu tmanā ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ग्ने॒। रु॒द्रः। असु॑रः। म॒हः। दि॒वः। त्वम्। शर्धः॑। मारु॑तम्। पृ॒क्षः। ई॒शि॒षे॒। त्वम्। वातैः॑। अ॒रु॒णैः। या॒सि॒। श॒म्ऽग॒यः। त्वम्। पू॒षा। वि॒ध॒तः। पा॒सि॒। नु। त्मना॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:1» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान दाह करनेवाले ! (त्वम्) आप (रुद्रः) दुष्टों को रुलानेवाले (असुरः) मेघ के समान (महः) बड़े (त्वम्) आप (मारुतम्) मरुत् विषयक (पृक्षः) सम्बन्ध और (दिवः) प्रकाशमान पदार्थ के (शर्द्धः) बल के (इशिषे) ईश्वर हैं उसके व्यवहार प्रकाश करने में समर्थ हैं। (त्वम्) आप (वातैः) पवनों से और (अरुणैः) अग्नि आदि पदार्थों के साथ (यासि) प्राप्त होते हैं। (पूषा) पुष्टि करने और (शङ्गयः) सुख प्राप्ति करानेवाले (त्वम्) आप (त्मना) अपने से (विधतः) सेवकों की (नु) शीघ्र (पासि) पालना करते हैं। इससे किसको सत्कार करने योग्य नहीं होते ? ॥६॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो जन बल की इच्छा करते दुष्टाचारियों को अच्छे प्रकार ताड़ना देकर धर्माचारियों को सुखी करते और सदैव सबकी उन्नति को चाह्ते हैं, वे अतुल ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने त्वं रुद्रोऽसुरो मेघइव महो महांस्त्वं मारुतं पृक्षो दिवः शर्ध ईशिषे त्वं वातैररुणैः सह यासि पूषा शङ्गयस्त्वं त्मना विधतो नु पासि तस्मात् कस्य सत्कर्त्तव्यो न भवसि ? ॥६॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अग्ने) अग्निरिव दाहकृत (रुद्रः) दुष्टानां रोदयिता (असुरः) मेघइव (महः) महान् (दिवः) प्रकाशमानस्य (त्वम्) (शर्द्धः) बलम् (मारुतम्) महद्विषयम् (पृक्षः) संपृक्तम् (इशिषे) (त्वम्) (वातैः) वायुभिः (अरुणैः)अग्न्यादिभिः (यासि) प्राप्नोषि (शङ्गयः) शं सुखं गमयति सं (त्वम्) (पूषा) पोषकः (विधतः) सेवकान् (पासि) पालयसि (नु) सद्यः (त्मना) आत्मना ॥६॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये जना बलमिच्छन्ति दुष्टान् सन्ताड्य धर्माचारिणः सुखयन्ति सदैव सर्वस्योन्नतिमिच्छन्ति तेऽसंख्यैश्वर्य्यं प्राप्नुवन्ति ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे बलाची इच्छा करतात, दुष्टांची ताडना करतात, धर्माचरण करणाऱ्यांना सुखी ठेवतात व सर्वांची उन्नती इच्छितात, ती अतुल ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥