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त्वम॑ग्ने॒ त्वष्टा॑ विध॒ते सु॒वीर्यं॒ तव॒ ग्नावो॑ मित्रमहः सजा॒त्य॑म्। त्वमा॑शु॒हेमा॑ ररिषे॒ स्वश्व्यं॒ त्वं न॒रां शर्धो॑ असि पुरू॒वसुः॑॥

English Transliteration

tvam agne tvaṣṭā vidhate suvīryaṁ tava gnāvo mitramahaḥ sajātyam | tvam āśuhemā rariṣe svaśvyaṁ tvaṁ narāṁ śardho asi purūvasuḥ ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒ग्ने॒। त्वष्टा॑। वि॒ध॒ते। सु॒ऽवीर्य॑म्। तव॑। ग्नावः॑। मि॒त्र॒ऽम॒हः॒। स॒ऽजा॒त्य॑म्। त्वम्। आ॒शु॒ऽहेमा॑। र॒रि॒षे॒। सु॒ऽअश्व्य॑म्। त्वम्। न॒राम्। शर्धः॑। अ॒सि॒। पु॒रु॒ऽवसुः॑॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:1» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:2» Anuvak:1» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वान् (त्वष्टा) अज्ञान का विनाश करनेवाले ! (त्वम्) आप (विधते) सेवा करते हुए मनुष्य के लिये (सुवीर्यम्) उत्तम पराक्रम को देते हैं। हे (मित्रमहः) मित्रों का सत्कार करनेवाले (ग्नावः) प्रशंसित वाणी से युक्त जन (तव) आपका (सजात्यम्) समान जातियों में प्रसिद्ध हुआ प्रेम है (आशुहेमा) शीघ्रकारी जनों को वृद्धि देनेवाले (त्वम्) आप (स्वश्व्यम्) सुन्दर अग्न्यादि पदार्थों में प्रसिद्ध हुए बल को (रिरिषे) देते हैं सो (त्वम्) आप (पुरुवसुः) बहुतों को निवास देनेवाले (नराम्) मनुष्यों के (शर्धः) बल के बढ़ानेवाले(असि) हैं ॥५॥
Connotation: - जिस पुरुष की सत्यवाणी और परार्थ पराक्रम है, वह राजजनों में प्रशंसायुक्त होता है ॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे अग्ने त्वष्टा त्वं विधते सुवीर्य्यं ददासि। हे मित्रमहो ग्नावः तव सजात्यं प्रेमाऽस्ति। आशुहेमा त्वं स्वश्व्यं रिरिषे स त्वं पुरुवसुर्नरां शर्धो वर्द्धकोऽसि ॥५॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अग्ने) वह्निरिव वर्त्तमान (त्वष्टा) छेत्ता (विधते) सेवमानाय नराय (सुवीर्यम्) सुष्ठुपराक्रमम् (तव) (ग्नावः) ग्ना प्रशंसिता वाणी विद्यते यस्य तत्सम्बुद्धौ (मित्रमहः) यो मित्राणि महति सत्करोति तत्सम्बुद्धौ (सजात्यम्) समानासु जातिषु भवम् (त्वम्) (आशुहेमा) आशून् शीघ्रकारिणो जनान् हिनोति वर्द्धयति सः (रिरिषे) प्रयच्छसि (स्वश्व्यम्) शोभेनेष्वश्वेष्वऽग्न्यादिषु भवम् (त्वम्) (नराम्) मनुष्याणाम् (शर्धः) बलम् (असि) (पुरुवसुः) पुरुणां बहूनां वासयिता ॥५॥
Connotation: - यस्य पुरुषस्य सत्या वाक् परार्थः पराक्रमोऽस्ति स राजसु प्रशंसितो भवति ॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ज्या पुरुषाची वाणी सत्य असते व पराक्रम इतरांसाठी असतो, त्याची राजे लोकांत प्रशंसा होते. ॥ ५ ॥