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यदि॒मा वा॒जय॑न्न॒हमोष॑धी॒र्हस्त॑ आद॒धे । आ॒त्मा यक्ष्म॑स्य नश्यति पु॒रा जी॑व॒गृभो॑ यथा ॥

English Transliteration

yad imā vājayann aham oṣadhīr hasta ādadhe | ātmā yakṣmasya naśyati purā jīvagṛbho yathā ||

Pad Path

यत् । इ॒माः । वा॒जय॑न् । अ॒हम् । ओष॑धीः । हस्ते॑ । आ॒ऽद॒धे । आ॒त्मा । यक्ष्म॑स्य । न॒श्य॒ति॒ । पु॒रा । जी॒व॒ऽगृभः॑ । य॒था॒ ॥ १०.९७.११

Rigveda » Mandal:10» Sukta:97» Mantra:11 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:10» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:11


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यत्) जब (अहम्) मैं (वाजयन्) रोगी के लिये स्वास्थ्यबल को देता हुआ-देने के हेतु (इमाः) इन (ओषधीः) ओषधियों को (हस्ते) हाथ में (आदधे) चिकित्सा के लिए लेता हूँ-ग्रहण करता हूँ, तो (यक्ष्मस्य) रोग का (आत्मा) आत्मा-स्वरूप या मूल्य (पुरा) पूर्व ही (नश्यति) नष्ट हो जाता है (जीवगृभः-यथा) जीवों के ग्रहण करनेवाले पकड़नेवाले के पास से जीव जैसे भाग जाते हैं ॥११॥
Connotation: - वैद्य चिकित्सा करने में ऐसे कुशल हों तथा प्रसिद्ध हों कि जैसे ही ओषधियों को चिकित्सा के लिए प्रयोग करें, रोगी को यह अनुभव हो कि ओषधी सेवन से पहले ही मेरा रोग भाग रहा है तथा वैद्य भी ओषधी देने के साथ-साथ उसे आश्वासन दे कि तेरा रोग तो अब जा रहा है ॥११॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यत्-अहं वाजयन्) यदाऽहं रोगिणे बलं स्वास्थ्यबलं प्रयच्छन् (इमाः-ओषधीः-हस्ते-आदधे) एना ओषधीः स्वहस्ते गृह्णामि (तदा यक्ष्मस्य-आत्मा पुरा नश्यति) रोगस्य स्वरूपं मूलं पूर्वमेव नष्टं भवति (जीवगृभः-यथा) जीवानां ग्रहीतुः सकाशाद् जीवाः पलायन्ते तथा ॥११॥