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उ॒त स्म॒ सद्म॑ हर्य॒तस्य॑ प॒स्त्यो॒३॒॑रत्यो॒ न वाजं॒ हरि॑वाँ अचिक्रदत् । म॒ही चि॒द्धि धि॒षणाह॑र्य॒दोज॑सा बृ॒हद्वयो॑ दधिषे हर्य॒तश्चि॒दा ॥

English Transliteration

uta sma sadma haryatasya pastyor atyo na vājaṁ harivām̐ acikradat | mahī cid dhi dhiṣaṇāharyad ojasā bṛhad vayo dadhiṣe haryataś cid ā ||

Pad Path

उ॒त । स्म॒ । सद्म॑ । ह॒र्य॒तस्य॑ । प॒स्त्योः॑ । अत्यः॑ । न । वाज॑म् । हरि॑ऽवान् । अ॒चि॒क्र॒द॒त् । म॒ही । चि॒त् । हि । धि॒षणा॑ । अह॑र्यत् । ओज॑सा । बृ॒हत् । वयः॑ । द॒धि॒षे॒ । ह॒र्य॒तः । चि॒त् । आ ॥ १०.९६.१०

Rigveda » Mandal:10» Sukta:96» Mantra:10 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:10


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (उत स्म) हाँ कमनीय परमात्मा के (हर्यतस्य) दो घर समान के मध्य (सद्म) सदन-व्यापन उपवेशन को (अत्यः) घोड़ा (वाजं न) संग्राम को जैसे प्राप्त होता है, ऐसे (हरिवान्) दुःखनाशक सुखकारक कृपाप्रसादवाला परमात्मा (अचिक्रदत्) उपासक के अन्दर वेग से प्राप्त होता है। (मही चित्) महत्त्वपूर्ण ही (धिषणा-ओजसा) स्तुति वाणी को अपने तेज से (अहर्यत्) चाहता है (हर्यतः) वह तू कमनीय (बृहत्) महान् (वयः) जीवन को (चित्) भी (दधिषे) उपासक के लिए धारण कराता है ॥१०॥
Connotation: - परमात्मा मोक्षधाम और संसार दोनों के अन्दर व्यापता है, घोड़ा जैसे संग्राम में व्यापता है, वह उपासक की स्तुति को अपने प्रभाव से चाहता है, उपासक के लिए प्रतिकाल में महान् या महत्त्वपूर्ण जीवन-मोक्ष की आयु को प्राप्त कराता है, धारण कराता है ॥१०॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (उत स्म) अपि खलु (हर्यतस्य) कमनीयस्य परमात्मनः (पस्त्योः सद्म) पस्त्ययोः “यकारलोपश्छान्दसः” गृहभूतयोर्मध्ये “पस्त्यं गृहनाम” [निघ० ३।४] सदनं प्रवेशनं व्यापनम् (अत्यः-वाजं न) अश्वः सङ्ग्राममिव (हरिवान्-अचिक्रदत्) दुःखहारकसुखकारक-कृपाप्रसादवान् परमात्मा गच्छति व्याप्नोति (मही चित्-धिषणा-ओजसा-अहर्यत्) महत्त्वपूर्णा स्तुतिवाचं “द्वितीयाविभक्तेर्लुक् छान्दसः” स्वात्मतेजसा कामयते “धिषणा वाङ्नाम” [निघ० १।११] (हर्यतः) स त्वं कमनीयः (बृहत्-वयः-चित्-दधिषे) महज्जीवनमुपासकायापि धारयसि ॥१०॥