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सं जा॑गृ॒वद्भि॒र्जर॑माण इध्यते॒ दमे॒ दमू॑ना इ॒षय॑न्नि॒ळस्प॒दे । विश्व॑स्य॒ होता॑ ह॒विषो॒ वरे॑ण्यो वि॒भुर्वि॒भावा॑ सु॒षखा॑ सखीय॒ते ॥

English Transliteration

saṁ jāgṛvadbhir jaramāṇa idhyate dame damūnā iṣayann iḻas pade | viśvasya hotā haviṣo vareṇyo vibhur vibhāvā suṣakhā sakhīyate ||

Pad Path

सम् । जा॒गृ॒वत्ऽभिः । जर॑माणः । इ॒द्य॒ते॒ । दमे॑ । दमू॑नाः । इ॒षय॑न् । इ॒ळः । प॒दे । विश्व॑स्य । होता॑ । ह॒विषः॑ । वरे॑ण्यः । वि॒ऽभुः । वि॒भाऽवा॑ । सु॒ऽसखा॑ । स॒खि॒ऽय॒ते ॥ १०.९१.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:91» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:8» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में परमेश्वर जीवों के लिये जगत् रचता है, प्रलय में विलीन कर देता है, उपासकों के साथ मित्रता करता है, उनके लिये मोक्ष को देता है, ये प्रधान विषय हैं।

Word-Meaning: - (विश्वस्य हविषः-होता) जगद्रूप हवि का प्रलय में अपने अन्दर ग्रहण करनेवाला-अन्दर लेनेवाला (वरेण्यः) वरने के योग्य (विभावाः) विशेष रूप से दीप्तिमान् (विभुः)  व्यापक परमात्मा (सखीयते) अपना सखा चाहनेवाले स्तोता के लिये-उपासक के लिए (सुसखा) शोभनमित्र परमात्मा (दमूनाः) अपने आनन्द को देने का स्वभाववाला (जागृवद्भिः) जागरूक विवेकीजनों द्वारा (जरमाणः) स्तुति में लाया हुआ (इळः-पदे-दमे) स्तुति के स्थान हृदय घर में (इषयन्-सम् इध्यते) स्तुतियों को प्रेरित करता हुआ सम्यक् प्रकाशित होता है-साक्षात् होता है ॥१॥
Connotation: - परमात्मा प्रलयकाल में जगत् को अपने अन्दर ले लेता है, जो उसकी स्तुति करता है, वह उसका मित्र बन जाता है, उसके लिए वह अपना आनन्द प्रदान करता है, सावधान ज्ञानीजनों के द्वारा वह हृदय में साक्षात् होता है ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्ते परमेश्वरो जीवेभ्यो जगद्रचयति प्रलये स्वस्मिन् विलीनीकरोति, ये च तस्योपासकाः सन्ति, तैः सह सख्यं सम्पाद्य तेभ्यो मोक्षं प्रयच्छतीति प्रधानविषयाः सन्ति।

Word-Meaning: - (विश्वस्य हविषः-होता) जगद्रूपस्य हविर्भूतस्य प्रलये स्वान्तरे ग्रहीता “अत्ता चराचरग्रहणात्” [वेदान्तः] (वरेण्यः) वर्तुमर्हुः (विभावा) विशेषेण भानवान्-दीप्तिमान् “विभावा विशेषेण भानवान्” [ऋ० ५।१।९ दयानन्दः] (विभुः) व्यापकोऽग्निरग्र-णायकः परमात्मा (सखीयते सुसखा) आत्मनः सखायमिच्छते स्तोत्रे-उपासकाय शोभनसखा (दमूनाः) दानमनाः स्वानन्दं दातुं स्वभावो यस्य तथाभूतः “दमूनाः-दानमनाः” [निरु० ४।४] (जागृवद्भिः-जरमाणः) जागरूकैर्विवेकिभिर्जनैः स्तूयमानः (इळः-पदे दमे) स्तुतिवाचः स्थाने हृद्गृहे (इषयन्-सम् इध्यते) स्तोतॄन् प्रेरयन् सम्यक् प्रकाशितो भवति-साक्षाद् भवति ॥१॥