Word-Meaning: - (आपः) हे जलो ! (अद्य) इस जीवन में (अनु-अचारिषम्) तुम्हें अनुकूलता से सेवन करता हूँ-बाहर स्नान द्वारा भीतर पान द्वारा (रसेन समगस्महि) तुम्हारे रस-स्पर्श स्वाद-रूप गुण से हम संयुक्त होते हैं, अतः (अग्ने) हे इन जनों के अग्रणायक-प्रेरक स्वामी परमात्मन् ! तू (पयस्वान्-आगहि) तेजस्वी बनकर समन्तरूप से मुझे प्राप्त हो और फिर (तं मा) उस मुझ को (वर्चसा संसृज) तेज से संयुक्त कर ॥९॥
Connotation: - जलों का ठीक-ठीक सेवन करने से, उचितरूप से स्नान, मार्जन और पान करने से लाभ लेने चाहिएँ। इसी प्रकार आप्त जनों से साक्षात् सत्सङ्ग तथा उपदेश ग्रहण कर अपने बाह्य वातावरण को बनावें और आन्तरिक सुख-शान्ति को प्राप्त करें तथा इन जलों एवं आप्त जनों के स्वामी प्रेरक परमात्मा के तेज आनन्द से अपने को तेजस्वी और आनन्दी बनावें ॥९॥