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मनो॑ अस्या॒ अन॑ आसी॒द्द्यौरा॑सीदु॒त च्छ॒दिः । शु॒क्राव॑न॒ड्वाहा॑वास्तां॒ यदया॑त्सू॒र्या गृ॒हम् ॥

English Transliteration

mano asyā ana āsīd dyaur āsīd uta cchadiḥ | śukrāv anaḍvāhāv āstāṁ yad ayāt sūryā gṛham ||

Pad Path

मनः॑ । अ॒स्याः॒ । अनः॑ । आ॒सी॒त् । द्यौः । आ॒सी॒त् । उ॒त । छ॒दिः । शु॒क्रौ । अ॒न॒ड्वाहौ॑ । आ॒स्ता॒म् । यत् । अया॑त् । सू॒र्या । गृ॒हम् ॥ १०.८५.१०

Rigveda » Mandal:10» Sukta:85» Mantra:10 | Ashtak:8» Adhyay:3» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:7» Mantra:10


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अस्याः-अनः) इस तेजस्विनी वधू का शकट-यान गृहस्थ की ओर जाने के लिए (मनः-आसीत्) मन है, मन से ही विहार-विचार करती है, जिससे कि (उत) और (छदिः-द्यौः-आसीत्) मनोरूप शकट का आवरण कामना करता हुआ नर है (अनड्वाहौ) शकट के दो वृषभ मानसिक और शरीरिक पराक्रम हैं (यत् सूर्या गृहम्-अयात्) जब तेजस्विनी वधू पतिगृह को जाती है ॥१०॥
Connotation: - वधू का विवाह हो चुकने पर पति के घर जाने के लिए आन्तरिक दृष्टि से यान-गाड़ी मन है और उसका आवरण या रक्षक पति है, मानसिक और शारीरिक पराक्रम विचार और क्रिया गृहस्थ में प्रवेश कराते हैं, इनके बिना गृहस्थ नहीं चला करता है ॥१०॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अस्याः-अवः-मनः-आसीत्) अस्यास्तेजस्विन्या वध्वाः शकटं मनोऽस्ति मनसा विहरति यतः (उत) अपि (छदिः-द्यौः-आसीत्) शकटस्य मनोरूपस्य छदिरावरणं कामयमानो वरोऽस्ति “द्यौः कामयमानो विद्वान्” [ऋ० ६।५२।२ दयानन्दः] (अनड्वाहौ शुक्रौ-आस्ताम्) शकटस्य बलीवर्दौ वृषभौ मानसशारीरिकपराक्रमौ स्तः “शुक्रः पराक्रमः” यजु० १३।५४ दयानन्दः] (यत् सूर्या गृहम्-अयात्) यदा तेजस्विनी वधूः पतिगृहं गच्छति ॥१०॥