Go To Mantra

यो अ॑स्मा॒ अन्नं॑ तृ॒ष्वा॒३॒॑दधा॒त्याज्यै॑र्घृ॒तैर्जु॒होति॒ पुष्य॑ति । तस्मै॑ स॒हस्र॑म॒क्षभि॒र्वि च॒क्षेऽग्ने॑ वि॒श्वत॑: प्र॒त्यङ्ङ॑सि॒ त्वम् ॥

English Transliteration

yo asmā annaṁ tṛṣv ādadhāty ājyair ghṛtair juhoti puṣyati | tasmai sahasram akṣabhir vi cakṣe gne viśvataḥ pratyaṅṅ asi tvam ||

Pad Path

यः । अ॒स्मै॒ । अन्न॑म् । तृ॒षु । आ॒ऽदधा॑ति । आज्यैः॑ । घृ॒तैः । जु॒होति॑ । पुष्य॑ति । तस्मै॑ । स॒हस्र॑म् । अ॒क्षऽभिः॑ । वि । च॒क्षे॒ । अग्ने॑ । वि॒श्वतः॑ । प्र॒त्यङ् । अ॒सि॒ । त्वम् ॥ १०.७९.५

Rigveda » Mandal:10» Sukta:79» Mantra:5 | Ashtak:8» Adhyay:3» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:6» Mantra:5


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यः) जो परमात्मा (अस्मै) इस जीवात्मा के लिए (तृषु) शीघ्र-तत्काल-जन्मसमय ही (अन्नम्) दुग्धरूप आहार को (आदधाते) माता के स्तनों में स्थापित करता है तथा वनस्पतियों में रखता है (आज्यैः-घृतैः) प्राणों से और भिन्न-भिन्न तेजों से (तस्य) तम् (जुहोति-पुष्यति) अपनी शरण देता है और पोषण करता है। (अग्ने) हे परमात्मन् ! (सहस्रम्-अक्षभिः) अनन्त व्याप्त दर्शनशक्तियों से (विचक्षे) विशिष्टरूप से देखता जानता है (त्वं विश्वतः प्रत्यङ्-असि) तू सर्वत्र साक्षात् विराजमान है ॥५॥
Connotation: - जैसे जीवात्मा संसार में जन्म लेता है, उसी समय से तुरन्त ही परमात्मा उसके आहार की व्यवस्था करता है। माता के स्तनों में दूध देता है, वनस्पतियों में रस देता है तथा प्राणों और जीवनप्रद तेज प्रभावों से बढ़ाता है और पुष्ट करता है तथा अपनी अनन्त ज्ञानदृष्टियों से सब कुछ जानता है और सर्वत्र विराजमान है ॥५॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यः) यः परमात्मा (अस्मै) एतस्मै जीवात्मने (तृषु-अन्नम्-आदधाति) क्षिप्रं सद्यः “तृषु क्षिप्रनाम” [निघ० ३।१५] अदनीयं पानीयमाहारं दुग्धरूपं मातृस्तने रसं वनस्पतिषु स्थापयति (आज्यैः-घृतैः-तस्मै जुहोति पुष्यति) प्राणैः “प्राणो वा आज्यम्” [तै० ३।८।१५।२३] भिन्न-भिन्नतेजोभिश्च तं विभक्तिव्यत्ययेन चटुकीं स्वीकरोति वर्धयति पोषयति (अग्ने) हे परमात्मन् ! (सहस्रम्-अक्षभिः) बहुभिरनन्तव्याप्तदर्शनशक्तिभिः (विचक्षे) विशिष्टं पश्यसि जानासि (त्वं विश्वतः प्रत्यङ्-असि) सर्वत्र साक्षाद्भूतोऽसि ॥५॥