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मि॒त्राय॑ शिक्ष॒ वरु॑णाय दा॒शुषे॒ या स॒म्राजा॒ मन॑सा॒ न प्र॒युच्छ॑तः । ययो॒र्धाम॒ धर्म॑णा॒ रोच॑ते बृ॒हद्ययो॑रु॒भे रोद॑सी॒ नाध॑सी॒ वृतौ॑ ॥

English Transliteration

mitrāya śikṣa varuṇāya dāśuṣe yā samrājā manasā na prayucchataḥ | yayor dhāma dharmaṇā rocate bṛhad yayor ubhe rodasī nādhasī vṛtau ||

Pad Path

मि॒त्राय॑ । शि॒क्ष॒ । वरु॑णाय । दा॒शुषे॑ । या । स॒म्ऽराजा॑ । मन॑सा । न । प्र॒ऽयुच्छ॑तः । ययोः॑ । धाम॑ । धर्म॑णा । रोच॑ते । बृ॒हत् । ययोः॑ । उ॒भे इति॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । नाध॑सी॒ इति॑ । वृतौ॑ ॥ १०.६५.५

Rigveda » Mandal:10» Sukta:65» Mantra:5 | Ashtak:8» Adhyay:2» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:5» Mantra:5


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (मित्राय वरुणाय दाशुषे शिक्ष) हे मनुष्य ! तू संसार में कर्मकरणार्थ प्रेरित करनेवाले मित्ररूप परमात्मा के लिए, मोक्ष में वरनेवाले तथा सांसारिक सुख एवं मोक्षानन्द देनेवाले के लिए अपने को समर्पित कर (या) जो दोनों मित्र और वरुण धर्मवाला परमात्मा (सम्राजा) सम्यक् राजमान (मनसा न प्रयुच्छतः) ज्ञान से प्रमाद नहीं करता है (ययोः-बृहत्-धाम) जिसका महान् मोक्षधाम है (धर्मणा रोचते) जो तेजोधर्म से प्रकाशमान होता है (उभे रोदसी नाधसी वृतौ) दोनों द्यावापृथिवी समृद्ध मार्ग में रहते हैं-वर्तते हैं ॥५॥
Connotation: - परमात्मा मनुष्य को संसार में कर्म करने के लिए प्रेरित करता है और मोक्ष में सुख देने के लिए ग्रहण करता है। ऐसे उस दाता के प्रति अपना समर्पण करना चाहिए। वह परमात्मा कभी भी कर्मफल देने में प्रमाद नहीं करता है और द्यावापृथिवी उसके शासन में चलते हैं ॥५॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (मित्राय वरुणाय दाशुषे शिक्ष) हे मानव ! त्वं मित्ररूपाय परमात्मने संसारे कर्मकरणार्थं प्रेरकाय वरुणाय-मोक्षे वरयित्रे परमात्मने सांसारिकमोक्षगतसुखानन्ददात्रे स्वात्मानं समर्पय (या) यौ मित्रवरुणरूपौ-सः परमात्मा (सम्राजा) सम्यग्राजमानौ-सम्यग्राजमानः (मनसा न प्रयुच्छतः) ज्ञानेन न प्रमाद्यतः-न प्रमाद्यति (ययोः-बृहत्-धाम) ययोर्यस्य महद् धाम मोक्षाख्यम् “त्रिपादस्यामृतं दिवि” [ऋ० १०।९०।३] (धर्मणा रोचते)  तेजोधर्मणा प्रकाशते (उभे रोदसी नाधसी वृतौ) द्यावापृथिव्यौ समृद्धे वृतौ-मार्गे वर्तेते ॥५॥