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पावी॑रवी तन्य॒तुरेक॑पाद॒जो दि॒वो ध॒र्ता सिन्धु॒राप॑: समु॒द्रिय॑: । विश्वे॑ दे॒वास॑: शृणव॒न्वचां॑सि मे॒ सर॑स्वती स॒ह धी॒भिः पुरं॑ध्या ॥

English Transliteration

pāvīravī tanyatur ekapād ajo divo dhartā sindhur āpaḥ samudriyaḥ | viśve devāsaḥ śṛṇavan vacāṁsi me sarasvatī saha dhībhiḥ puraṁdhyā ||

Pad Path

पावी॑रवी । त॒न्य॒तुः । एक॑ऽपात् । अ॒जः । दि॒वः । ध॒र्ता । सिन्धुः॑ । आपः॑ । स॒मु॒द्रियः॑ । विश्वे॑ । दे॒वासः॑ । शृ॒ण॒व॒न् । वचां॑सि । मे॒ । सर॑स्वती । स॒ह । धी॒भिः । पुर॑म्ऽध्या ॥ १०.६५.१३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:65» Mantra:13 | Ashtak:8» Adhyay:2» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:5» Mantra:13


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (पावीरवी) अज्ञाननाशक ज्ञानशस्त्र वेद का स्वामी परमात्मा उसकी वेदवाणी या विद्युत् शक्ति (तन्यतुः) अपनी दो धाराओं या ज्ञानबल को विस्तृत करनेवाली (अजः-एकपात्) अजन्मा एकरस (दिवः-धर्ता) मोक्षधाम या द्युलोक का धारक परमात्मा या सूर्य (सिन्धुः-समुद्रियः-आपः) बहनेवाले अन्तरिक्ष के जल या आप्त विद्वान् (विश्वेदेवासः) सब विषयों में प्रविष्ट विद्वान् या ऋतुएँ (सरस्वती) जलवती नदी या ज्ञानवती नारी (धीभिः पुरन्ध्या सह ) यथायोग्य कर्मों से स्तुति से बहुत प्रज्ञा के साथ (मे वचांसि शृण्वन्) मेरे वचनों को सुनें-मानें-पालन करें ॥१३॥
Connotation: - अज्ञाननाशक परमात्मा की वेदवाणी अपने ज्ञान से मनुष्यों का उपकार करती है। मोक्ष का धारक परमात्मा तथा आप्त विद्वान् तथा ज्ञानवती नारी यथायोग्य आचरणों से मेरे निवेदनों को स्वीकार करें। एवं-द्युलोक का धारक सूर्यदेव और उसकी शक्ति और विद्युत् हमारे उपयोग में आवें। जल ऋतुएँ और नदियाँ हमारे लिए लाभप्रद बनें ॥१३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (पावीरवी) पविः शल्यः, तद्वत् पवीरमायुधमज्ञाननाशकं “तद्वानिन्द्रः पवीरवान्” [निरु० १२।३०] तस्य या सा पावीरवी विद्युच्छक्तिः, वेदवाग्वा (तन्यतुः) स्वधारे स्वबलं वा तनयित्री विस्तारयित्री (अजः-एकपात्) अजन्मा स एकरूपः-एकरसः (दिवः-धर्त्ता) मोक्षधाम्नो द्युलोकस्य वाधारयिता परमात्मा सूर्यो वा (सिन्धुः-समुद्रियः-आपः) स्यन्दमानाः-भ्रमणशीलाः ‘एकवचनं व्यत्ययेन’ आन्तरिक्ष्याः ‘समुद्रमन्तरिक्षनाम’ [निघ० १।३] आपः-आप्ता विद्वांसो जलानि मेघजलानि वा (विश्वेदेवासः) सर्वविषयप्रविष्टा विद्वांसः-ऋतवो  वा “ऋतवो वै विश्वेदेवाः” [श० ७।१।१।४३] (सरस्वती) जलवती नदी ज्ञानवती नारी वा (धीभिः पुरन्ध्या सह) यथायोग्यकर्मभिः स्तुत्या बहुविधप्रज्ञया सह (मे वचांसि शृण्वन्) मम वचनानि शृण्वन्तु मन्यन्तां स्वीकुर्वन्तु पालयन्तु ॥१३॥