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वि षा होत्रा॒ विश्व॑मश्नोति॒ वार्यं॒ बृह॒स्पति॑र॒रम॑ति॒: पनी॑यसी । ग्रावा॒ यत्र॑ मधु॒षुदु॒च्यते॑ बृ॒हदवी॑वशन्त म॒तिभि॑र्मनी॒षिण॑: ॥

English Transliteration

vi ṣā hotrā viśvam aśnoti vāryam bṛhaspatir aramatiḥ panīyasī | grāvā yatra madhuṣud ucyate bṛhad avīvaśanta matibhir manīṣiṇaḥ ||

Pad Path

वि । सा । होत्रा॑ । विश्व॑म् । अ॒श्नो॒ति॒ । वार्य॑म् । बृह॒स्पतिः॑ । अ॒रम॑तिः । पनी॑यसी । ग्रावा॑ । यत्र॑ । म॒धु॒ऽसुत् । उ॒च्यते॑ । बृ॒हत् । अवी॑वशन्त । म॒तिऽभिः॑ । म॒नी॒षिणः॑ ॥ १०.६४.१५

Rigveda » Mandal:10» Sukta:64» Mantra:15 | Ashtak:8» Adhyay:2» Varga:8» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:5» Mantra:15


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सा होत्रा) वह वेदवाणी (विश्वं वार्यं वि-अश्नोति) समस्त वरणीय वस्तुओं को व्याप्त होती है (बृहस्पतिः-अरमतिः पनीयसी) परमात्मा की जो वेदवाणी वह अप्रतिहत है, प्रशंसनीय है (यत्र) जिस वेदवाणी में (ग्रावा) विद्वान् (मधुसुत्-उच्यते) ज्ञानमधु का निष्पादक कहा जाता है-होता है (मनीषिणः-मतिभिः-बृहत्-अवीवशन्त) जिसे मननशील विचारों के द्वारा बहुत चाहते हैं ॥१५॥
Connotation: - वेदवाणी समस्त पदार्थों में व्याप्त है अर्थात् उनके गुण और स्वरूपों का वर्णन करती है, वह मनुष्यवाणी के समान प्रतिहत नहीं होती, वह यथार्थ वाणी है। उसमें निष्णात विद्वान् ज्ञानमधु का सेवन करता है और बढ़ता चला जाता है ॥१५॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सा होत्रा) सा वेदवाक् “होत्रा वाङ्नाम” [निघ० १।११] (विश्वं वार्यं वि-अश्नोति) समस्तं वरणीयं वस्तु व्याप्नोति (बृहस्पतिः-अरमतिः-पनीयसी) बृहस्पतेः परमात्मनः ‘व्यत्यये प्रथमा’ या वाक् सा-अरमतिः-अप्रतिहता यस्यासौ सा वेदवाक् प्रशंसनीया (यत्र) यस्यां वेदवाचि (ग्रावा) विद्वान् “विद्वांसो हि ग्रावाः” [श० ३।९।३।२४] (मधुसुत्-उच्यते) ज्ञानमधुनो निष्पादक उच्यते भवति (मनीषिणः-मतिभिः बृहत् अवीवशन्त) यां मननशीला मननैः बहुकामयन्ते ॥१५॥