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अ॒भी ष्व१॒॑र्यः पौंस्यै॑र्भवेम॒ द्यौर्न भूमिं॑ गि॒रयो॒ नाज्रा॑न् । ता नो॒ विश्वा॑नि जरि॒ता चि॑केत परात॒रं सु निॠ॑तिर्जिहीताम् ॥

English Transliteration

abhī ṣv aryaḥ pauṁsyair bhavema dyaur na bhūmiṁ girayo nājrān | tā no viśvāni jaritā ciketa parātaraṁ su nirṛtir jihītām ||

Pad Path

अ॒भि । सु । अ॒र्यः । पौंस्यैः॑ । भ॒वे॒म॒ । द्यौः । न । भूमि॑म् । गि॒रयः॑ । न । अज्रा॑न् । ता । नः॒ । विश्वा॑नि । ज॒रि॒ता । चि॒के॒त॒ । प॒रा॒ऽत॒रम् । सु । निःऽऋ॑तिः । जि॒ही॒ता॒म् ॥ १०.५९.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:59» Mantra:3 | Ashtak:8» Adhyay:1» Varga:22» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:4» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अर्यः) शत्रुओं को (पौंस्यैः-सु अभि भवेम) पुरुषार्थों के द्वारा सुगमता से स्वाधीन करें (द्यौः-न-भूमिम्) जैसे सूर्य पृथिवी को अपनी रश्मियों से तपाकर के स्वाधीन करता है (गिरयः-न-अज्रान्) या जैसे पर्वत गतिशील जलप्रवाहों को फेंकते हैं (नः-ता विश्वानि जरिता चिकेत) हमारे उन सब प्रयोजनों को जीर्ण-वृद्ध जानता है। आगे पूर्ववत् ॥३॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिए परस्पर संगठन करके विविध पुरुषार्थों के द्वारा शत्रुओं पर प्रभाव डालकर स्वाधीन करें। जैसे सूर्य तापक रश्मियों से पृथिवी को तपाता है या जैसे जलधाराओं को पर्वत नीचे फेंकता है, इस प्रयोजन के लिए अपने वृद्ध नेता के नेतृत्व में रहकर पुरुषार्थ करें, जिससे कृच्छ्र आपत्ति भी दूर रहे ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अर्यः) अरीन् शत्रून् “अर्यः-अरयः” [ऋ० ७।३४।१८ दयानन्दः] (पौंस्यैः सुअभिभवेम) पुरुषार्थैः सुगमतया-अधिकुर्मः (द्यौः-न-भूमिम्) यथा सूर्यः पृथिवीं स्वरश्मिभिरभितप्तां कृत्वा (गिरयः-न-अज्रान्) पर्वता यथा गतिशीलान् जलप्रवाहान् प्रक्षिपन्ति (नः-ता विश्वानि जरिता चिकेत) नः-अस्माकं तानि विश्वानि प्रयोजनानि जीर्णो वृद्धो जानाति। अग्रे पूर्ववत् ॥३॥