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ऋ॒तस्य॒ हि व॑र्त॒नय॒: सुजा॑त॒मिषो॒ वाजा॑य प्र॒दिव॒: सच॑न्ते । अ॒धी॒वा॒सं रोद॑सी वावसा॒ने घृ॒तैरन्नै॑र्वावृधाते॒ मधू॑नाम् ॥

English Transliteration

ṛtasya hi vartanayaḥ sujātam iṣo vājāya pradivaḥ sacante | adhīvāsaṁ rodasī vāvasāne ghṛtair annair vāvṛdhāte madhūnām ||

Pad Path

ऋ॒तस्य॑ । हि । व॒र्त॒नयः॑ । सुऽजा॑तम् । इषः॑ । वाजा॑य । प्र॒ऽदिवः॑ । सच॑न्ते । अ॒धी॒वा॒सम् । रोद॑सी॒ इति॑ । व॒व॒सा॒ने इति॑ । घृ॒तैः । अन्नैः॑ । व॒वृ॒धा॒ते॒ इति॑ । मधू॑नाम् ॥ १०.५.४

Rigveda » Mandal:10» Sukta:5» Mantra:4 | Ashtak:7» Adhyay:5» Varga:33» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:4


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (ऋतस्य हि) सृष्टियज्ञ-ब्रह्माण्ड के मध्य में (वर्तनयः-प्रदिवः-इषः) वर्तमान प्रकाशमान ग्रहनक्षत्रादि लोक (वाजाय सुजातं सचन्ते) गतिबल प्राप्ति के लिए सुप्रसिद्ध सूर्यरूप अग्नि को सेवन करते हैं (रोदसी) द्युलोक पृथिवीलोक (अधीवासं वावसाने) ऊपर वस्त्रसमान आच्छादन करते हुए (घृतैः-अन्नैः-मधूनाम्-वावृधाते) सूर्य से प्राप्त तेजों और अन्नों द्वारा प्रजाओं को बहुत बढ़ाते हैं ॥४॥
Connotation: - सृष्टि या ब्रह्माण्ड में वर्तमान पिण्ड ग्रह आदि सुप्रसिद्ध अग्निरूप सूर्य से बल पाते हैं, द्युलोक और पृथिवीलोक दोनों अपने ऊपर धारण करते हैं। तेजों अन्नों-तेजशक्ति अन्नशक्ति को प्राप्त कर मनुष्यादि प्रजाओं को समृद्ध करने के लिए द्युलोक सूर्य से तेज शक्ति को लेता है, पृथिवीलोक सूर्य से अन्न शक्ति को लेता है। ऐसे ही प्रतापी गुणवान् राजा प्रजाओं को ज्ञानप्रकाश प्रदान करने की व्यवस्था तथा भोजन की व्यवस्था करे ॥४॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (ऋतस्य हि) सृष्टियज्ञस्य खलु ब्रह्माण्डस्य मध्ये (वर्तनयः-प्रदिवः-इषः) वर्तमानाः-“वर्तनिः-वर्तमानाः” [ऋ० १।१४०।३ दयानन्दः] प्रकाशमानाः प्रजारूपा नक्षत्रादयः “प्रजा वा इषः” [श० १।७।३।१४] (वाजाय सुजातं सचन्ते) सुप्रसिद्धमग्निं सूर्यरूपं सेवन्ते (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ द्युलोकः पृथिवीलोकश्च “रोदसी-द्यावापृथिवीनाम” [निघ० ३।३] (अधीवासं वावसाने) उपरिवस्त्रमिवाच्छादयन्तौ (मधूनाम्) मनुष्याद्याः प्रजाः, व्यत्ययेन द्वितीयास्थाने षष्ठी “प्रजा वै मधुः” [जं० १।८८] (घृतैः-अन्नैः-वावृधाते) तेजोभिरन्नैश्च सूर्यात् प्राप्य वर्धयतः ॥४॥