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जनि॑ष्ट॒ योषा॑ प॒तय॑त्कनीन॒को वि चारु॑हन्वी॒रुधो॑ दं॒सना॒ अनु॑ । आस्मै॑ रीयन्ते निव॒नेव॒ सिन्ध॑वो॒ऽस्मा अह्ने॑ भवति॒ तत्प॑तित्व॒नम् ॥

English Transliteration

janiṣṭa yoṣā patayat kanīnako vi cāruhan vīrudho daṁsanā anu | āsmai rīyante nivaneva sindhavo smā ahne bhavati tat patitvanam ||

Pad Path

जनि॑ष्ठ । योषा॑ । प॒तय॑त् । क॒नी॒न॒कः । वि । च॒ । अरु॑हम् । वी॒रुधः॑ । दं॒सनाः॑ । अनु॑ । आ । अ॒स्मै॒ । री॒य॒न्ते॒ । नि॒व॒नाऽइ॑व । सिन्ध॑वः । अ॒स्मै । अह्ने॑ । भ॒व॒ति॒ । तत् । प॒ति॒ऽत्व॒नम् ॥ १०.४०.९

Rigveda » Mandal:10» Sukta:40» Mantra:9 | Ashtak:7» Adhyay:8» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:3» Mantra:9


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (योषा जनिष्ट) जब समागमयोग्य ब्रह्मचारिणी हो जाती है, तब (कनीनकः-पतयत्) कन्या की कामना करनेवाला वर भी प्राप्त हो जाता है, उसका स्वामित्व करता है (च) तथा (वीरुधः-अरुहन्) जैसे ओषधियाँ उगती और बढती हैं, वैसे (दंसनाः-अनु) कर्मों के अनुसार (अस्मै) इस वर के लिए (सिन्धवः-निवना-इव रीयन्ते) सुख-सम्पत्तियाँ ऐसे प्राप्त होती हैं, जैसे नदियाँ निम्न स्थान को प्राप्त होती हैं (अस्मै-अह्ने तत् पतित्वनं भवति) इस अहन्तव्य वर के लिए गृहस्थसम्बन्धी स्वामित्व प्राप्त हो जाता है ॥९॥
Connotation: - कन्या और कुमार ब्रह्मचर्य के पालन से जब एक-दूसरे की कामना करने और समागम के योग्य हों, तो उनका विवाह होना चाहिए, बिना कामना और योग्यता के नहीं। तभी पवित्र आचरण आदि द्वारा गृहस्थ में सुख सम्पतियाँ, नदियाँ जैसे निम्न स्थान में प्राप्त होती हैं, वैसे प्राप्त होती हैं ॥९॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (योषा जनिष्ट) यदा समागमयोग्या ब्रह्मचारिणी जायते, तदा (कनीनकः-पतयत्) कन्याकामो वरोऽपि कन्यां प्राप्नोति तत्स्वामित्वं करोति वा (च) तथा (वीरुधः-अरुहन्) यथा-ओषधयो विरोहन्ति वर्धन्ते तथा (दंसनाः-अनु) कर्माणि अनुसृत्य “दंसनाः कर्माणि” [ऋ० ५।८७।८] (अस्मै) अस्मै वराय (सिन्धवः-निवना-इव रीयन्ते) सुखसम्पत्तयः सिन्धवो नद्यो यथा निम्नं स्थानं प्रति प्राप्नुवन्ति (अस्मै-अह्ने तत् पतित्वनं भवति) अस्मै-अहन्तव्याय तद् गार्हस्थ्यं पतित्वं भवति ॥९॥