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न ते॒ अदे॑वः प्र॒दिवो॒ नि वा॑सते॒ यदे॑त॒शेभि॑: पत॒रै र॑थ॒र्यसि॑ । प्रा॒चीन॑म॒न्यदनु॑ वर्तते॒ रज॒ उद॒न्येन॒ ज्योति॑षा यासि सूर्य ॥

English Transliteration

na te adevaḥ pradivo ni vāsate yad etaśebhiḥ patarai ratharyasi | prācīnam anyad anu vartate raja ud anyena jyotiṣā yāsi sūrya ||

Pad Path

न । ते॒ । अदे॑वः । प्र॒ऽदिवः॑ । नि । वा॒स॒ते॒ । यत् । ए॒त॒शेभिः॑ । प॒त॒रैः । र॒थ॒र्यसि॑ । प्रा॒चीन॑म् । अ॒न्यत् । अनु॑ । व॒र्त॒ते॒ । रजः॑ । उत् । अ॒न्येन॑ । ज्योति॑षा । या॒सि॒ । सू॒र्य॒ ॥ १०.३७.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:37» Mantra:3 | Ashtak:7» Adhyay:8» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:3» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सूर्य) हे परमात्मन् ! (यत्) जब (पतरैः-एतशेभिः) प्रगतिशील शक्ति तरङ्गों से या किरणों के द्वारा (रथर्यसि) तू प्राप्त होता है या गति करता है (प्रदिवः-अदेवः) पूर्ववर्ती तुझे न माननेवाला नास्तिक या प्रकाशरहित अन्धकार सम्मुख नहीं रहता है, नहीं ठहरता है। (प्राचीनम्-अन्यत्-रजः) तुझ से पीछे उत्पन्न किए हुए लोक या स्थान के प्रति (अनु-वर्तते) वर्तता है-प्राप्त होता है, जिससे कि (अन्येन ज्योतिषा-यासि) तू विशिष्ट ज्ञानप्रकाश से या ज्योति से प्राप्त होता है, जाना जाता है ॥३॥
Connotation: - परमात्मा को न माननेवाला नास्तिक पुरुष उसके सामने नहीं ठहर सकता। वह शक्तितरङ्गों से सबको अपने अधिकार में किये हुए है। वह नास्तिक अन्य दुःखस्थानों को ही प्राप्त होता है तथा सूर्य के सम्मुख अन्धकार नहीं ठहर सकता। उसकी प्रखर ज्योतियों से ताड़ित हुआ किसी स्थान में चला जाता है। उस ज्ञानप्रकाशक परमात्मा और सूर्य की शरण लेना चाहिए ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सूर्य) हे परमात्मन् ! सूर्य ! वा त्वम् (यत्-एतशेभिः पतरैः रथर्यसि) यदा-अश्वैरिव शक्तितरङ्गैः पतनशीलैः किरणैर्वा प्राप्नोषि गच्छसि वा ‘रथर्यति गतिकर्मा’ [निघ० २।१४] तदा (प्रदिवः-अदेवः-निवासते) पूर्ववर्ती “प्रदिव पुराणनाम” [निघ० ३।२७] त्वाममन्यमानो नास्तिकः प्रकाशरहितोऽन्धकारो वा “अदेवः प्रकाशरहितः” [ऋ० ६।१७।७ दयानन्दः] (प्राचीनम्-अन्यत्-रजः-अनुवर्तते) पश्चाद्भवमन्यत् खलु लोकं स्थानमनुवर्तते न तु तव सम्मुखम्। यतः (अन्येन ज्योतिषा यासि) तद्भिन्नेन विरलेन ज्ञानप्रकाशेन ज्योतिषा वा प्राप्तो भवसि ॥३॥