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अबु॑ध्रमु॒ त्य इन्द्र॑वन्तो अ॒ग्नयो॒ ज्योति॒र्भर॑न्त उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टिषु । म॒ही द्यावा॑पृथि॒वी चे॑तता॒मपो॒ऽद्या दे॒वाना॒मव॒ आ वृ॑णीमहे ॥

English Transliteration

abudhram u tya indravanto agnayo jyotir bharanta uṣaso vyuṣṭiṣu | mahī dyāvāpṛthivī cetatām apo dyā devānām ava ā vṛṇīmahe ||

Pad Path

अबु॑ध्रम् । ऊँ॒ इति॑ । त्ये । इन्द्र॑ऽवन्तः । अ॒ग्नयः॑ । ज्योतिः॑ । भर॑न्तः । उ॒षसः॑ । विऽउ॑ष्टिषु । म॒ही इति॑ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । चे॒त॒ता॒म् । अपः॑ । अ॒द्य । दे॒वाना॑म् । अवः॑ । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥ १०.३५.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:35» Mantra:1 | Ashtak:7» Adhyay:8» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:3» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में सूर्य, उषा, द्युलोक, पृथिवीलोकों से उपयोग लेना, योगी विद्वानों से योगशिक्षा और पारिवारिक जनों का परस्पर वर्तना दिखलाया है।

Word-Meaning: - (उषसः-व्युष्टिषु) उषोवेला-प्रातर्वेला के अन्धकार दूर होनेवाले अवसरों में (त्ये-इन्द्रवन्तः-अग्नयः) वे सूर्यवाले-सूर्य सूर्य के आश्रित रहनेवाले किरण या परमात्मावाले-परमात्मा के आश्रित रहनेवाले उपासक विद्वान् जन (ज्योतिः-भरन्तः) प्रकाश धारण करनेवाले या ज्ञानज्योति धारण करनेवाले (अबुध्रम्) प्रादुर्भूत होते हैं या प्रबुद्ध हो जाते हैं (मही द्यावापृथिवी-अपः-चेतताम्) महत्त्वपूर्ण द्युलोक पृथ्वीलोक या स्त्री-पुरुष अपना कर्म प्रारम्भ कर देते हैं (देवानाम्-अवः-अद्य-आ वृणीमहे) उन किरणों या उपासक विद्वानों के रक्षण को हम माँगते हैं-चाहते हैं, निज जीवन में धारण करने को ॥१॥
Connotation: - प्रातःकाल होते ही अन्धकार को हटानेवाली सूर्य की किरणें द्युलोक पृथिवीलोक को प्रकाशित कर देती हैं। उन पर कार्य प्रारम्भ हो जाने के लिये जीवनरक्षा के निमित्त उनको सेवन करना चाहिए तथा प्रातः होते ही अज्ञानान्धकार मिटानेवाले परमात्मा के उपासक विद्वान् जाग जाते हैं, स्त्री-पुरुषों को कार्य-व्यवहार चलाने को ज्ञानप्रकाश देते हैं, उनके रक्षण में जीवन उन्नत करना चाहिए ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अस्मिन् सूक्ते सूर्योषोद्युलोकपृथिवीलोकपदार्थेभ्य उपयोगग्रहणम्, विदुषां योगिनां सङ्गत्या योगशिक्षणम्, पारिवारिकजनानां पारस्परिकवर्तनं च वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (उषसः व्युष्टिषु) उषोवेलायास्तमोव्युदसनावसरेषु (त्ये इन्द्रवन्तः-अग्नयः) ते सूर्यवन्तः सूर्याश्रिताः किरणाः परमात्मवन्तः परमात्मोपासका विद्वांसो वा (ज्योतिः-भरन्तः) प्रकाशं धारयन्तो ज्ञानज्योतिर्धारयन्तो वा (अबुध्रम्) प्रादुर्भवन्ति प्रबुद्धा भवन्ति वा (मही द्यावापृथिवीअपः-चेतताम्) महत्यौ द्यावापृथिव्यौ महत्त्वपूर्णौ द्युलोकपृथिवीलोकौ स्त्रीपुरुषौ वा स्वकीयं कर्म प्रारभेते (देवानाम्-अवः-अद्य-आ वृणीमहे) तेषां रश्मिरूपदेवानां विदुषामुपासकानां वा रक्षणं वयं याचामहे निजजीवने धारयितुम् ॥१॥