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मूषो॒ न शि॒श्ना व्य॑दन्ति मा॒ध्य॑ स्तो॒तारं॑ ते शतक्रतो । स॒कृत्सु नो॑ मघवन्निन्द्र मृळ॒याधा॑ पि॒तेव॑ नो भव ॥

English Transliteration

mūṣo na śiśnā vy adanti mādhya stotāraṁ te śatakrato | sakṛt su no maghavann indra mṛḻayādhā piteva no bhava ||

Pad Path

मूषः॑ । न । शि॒श्ना । वि । अ॒द॒न्ति॒ । मा॒ । आ॒ऽध्यः॑ । स्तो॒तार॑म् । ते॒ । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । स॒कृत् । सु । नः॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । इ॒न्द्र॒ । मृ॒ळ॒य॒ । अध॑ । पि॒ताऽइ॑व । नः॒ । भ॒व॒ ॥ १०.३३.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:33» Mantra:3 | Ashtak:7» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:3» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (शतक्रतो-इन्द्र) हे बहुत प्रज्ञानवन् परमेश्वर ! (मा-आध्यः) मुझे मानसिक वासनाएँ (वि-अदन्ति) विविधरूप से खा रही हैं-सता रही हैं (मूषः-न शिश्ना) जैसे चूहे अन्नादि रस से लिप्त सूत्रों को या अपने पुच्छादि अङ्गों को खाते हैं (मघवन्) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्  ! (सकृत् नः सुमृळय) एक बार तो हमें मोक्ष प्रदान कर, सुखी कर (नः पिता-इव भव) तू हमारे पिता के समान हो-है ॥३॥
Connotation: - मानसिक वासनाएँ मनुष्य के आन्तरिक जीवन को खाती रहती हैं। उनसे बचने का उपाय केवल परमात्मा की शरण है या उसकी उपासना है। मानव के सांसारिक कल्याण और मोक्ष पाने का भी परम साधन है ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (शतक्रतो-इन्द्र) हे बहुप्रज्ञानवन् परमेश्वर ! (मा-आध्यः) मां मानसवासनाः कामनाः “आध्यः कामाः” [निरु०४।७] (व्यदन्ति) विविधं खादन्ति (मूषः-न शिश्ना) यथा मूषिकाः खल्वन्नरसादिषु क्लिन्नानि सूत्राणि स्वाङ्गानि पुच्छादीनि वा “स्नातानि सूत्राणि स्वाङ्गाभिधानं वा” [निरु०४।७] विविधं खादन्ति तद्वत् (मघवन्) हे ऐश्वर्यवन् !  परमात्मन् ! (सकृत्-नः सुमृळय) एकवारं तु अस्मान् सम्यक् सुखय मोक्षप्रदानेन (नः-पिता-इव भव) त्वमस्माकं पिता-इव पितृसमानो भव ॥३॥