Go To Mantra

सं मा॑ तपन्त्य॒भित॑: स॒पत्नी॑रिव॒ पर्श॑वः । नि बा॑धते॒ अम॑तिर्न॒ग्नता॒ जसु॒र्वेर्न वे॑वीयते म॒तिः ॥

English Transliteration

sam mā tapanty abhitaḥ sapatnīr iva parśavaḥ | ni bādhate amatir nagnatā jasur ver na vevīyate matiḥ ||

Pad Path

सम् । मा॒ । त॒प॒न्ति॒ । अ॒भितः॑ । स॒पत्नीः॑ऽइव । पर्श॑वः । नि । बा॒ध॒ते॒ । अम॑तिः । न॒ग्नता॑ । जसुः॑ । वेः । न । वे॒वी॒य॒ते॒ । म॒तिः ॥ १०.३३.२

Rigveda » Mandal:10» Sukta:33» Mantra:2 | Ashtak:7» Adhyay:8» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:10» Anuvak:3» Mantra:2


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (मा पर्शवः सपत्नीः-इव-अभितः-सं तपन्ति) मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म में गर्भाशय में मातृदेह की पसलियाँ मुझे सपत्नियों की भाँति इधर-उधर से पीड़ित करती हैं (अमतिः-नग्नता नि बाधते) और तब मतिरहितता-अज्ञता तथा निर्लज्जता वस्त्र-विहीनता की भाँति साधनहीनता दुःख देती है (जसुः-वेः-न मतिः-वेवीयते) पुनः संसार में जीते हुए युवक को क्षीण करनेवाला जराप्रवाह भी पीड़ित करता है, जैसे पक्षी की मति नाश करनेवाले शिकार के भय से विचलित हो जाती है ॥२॥
Connotation: - जीवात्मा जब माता के गर्भ में जाता है, तो तङ्ग स्थान में पीड़ा अनुभव करता है तथा अज्ञता और कर्म करने में असमर्थता भी उसे पीड़ित करती है, मृत्यु का भय भी छाया हुआ रहता है ॥२॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (मा पर्शवः सपत्नीः-इव-अभितः सं तपन्ति) मृत्योरनन्तरं पुनर्जन्मनि मां मातृगर्भाशये मातृदेहपर्शवः-अन्यपत्न्य इवोभयतः सम्पीडयन्ति (अमतिः-नग्नता निबाधते) तदाऽज्ञताऽबोधावस्था निर्लज्जता वस्त्रविहीनतेव साधनहीनता-अकर्मण्यता अन्तर्दुःखयति (जसुः-वेः-न मतिः-वेवीयते) पुनः संसारे जीवन्तं युवानं चोपक्षयकर्त्ता जराप्रवाहोऽपि पीडयति ततस्तु यथा पक्षिणो मतिर्बुद्धिरुपक्षयितुर्व्याधाद् ‘जसुः’ षष्ठीस्थाने प्रथमा भृशं विचलिता भवति ॥२॥