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भ॒द्रं नो॒ अपि॑ वातय॒ मनो॒ दक्ष॑मु॒त क्रतु॑म् । अधा॑ ते स॒ख्ये अन्ध॑सो॒ वि वो॒ मदे॒ रण॒न्गावो॒ न यव॑से॒ विव॑क्षसे ॥

English Transliteration

bhadraṁ no api vātaya mano dakṣam uta kratum | adhā te sakhye andhaso vi vo made raṇan gāvo na yavase vivakṣase ||

Pad Path

भ॒द्रम् । नः॒ । अपि॑ । वा॒त॒य॒ । मनः॑ । दक्ष॑म् । उ॒त । क्रतु॑म् । अध॑ । ते॒ । स॒ख्ये । अन्ध॑सः । वि । वः॒ । मदे॑ । रण॑न् । गावः॑ । न । यव॑से । विव॑क्षसे ॥ १०.२५.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:25» Mantra:1 | Ashtak:7» Adhyay:7» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में सोम शब्द से परमात्मा के गुणों का उपदेश है।

Word-Meaning: - (नः-मनः दक्षम्) हे शान्तस्वरूप परमात्मन् ! तू हमारे मन को तथा प्राणबल को (उत क्रतुं भद्रम्-अपि वातय) और ज्ञानेन्द्रियों के बल को एवं कर्मेन्द्रियों के व्यापार को कल्याणमार्ग के प्रति चला (अध) पुनः (ते-अन्धसः सख्ये) तुझ शान्तस्वरूप परमात्मा के मित्रभाव में (रणन्) रममाण होवें। (वः-मदे वि) तेरे हर्षप्रद स्वरूप में विशेषरूप से बढ़ते रहें। (गावः-नः यवसे) गौवें जैसे घास में रमती हैं। (विवक्षसे) तू महान् है ॥१॥
Connotation: - परमात्मा के मित्रभाव में रहने पर वह हमारे मन, प्राणबल और इन्द्रियों के बल को कल्याणमार्ग की ओर चलाता है। उसके आश्रय पर ऐसे आनन्द में रमण करते हैं, जैसे गौवें घास के अन्दर रमण करती हैं ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्ते सोमशब्देन परमात्मगुणा उपदिश्यन्ते।

Word-Meaning: - (नः मनः-दक्षम्-उत क्रतुं भद्रम्-अपि वातय) हे सोम शान्तस्वरूप परमात्मन् ! त्वमस्माकं मनोऽन्तःकरणं तथा प्राणबलं “दक्षो बलनाम” [निघ० २।८] ‘प्राणा वै दक्षः’ [जै० ३।६२] ज्ञानेन्द्रियबलं, एवं कर्म-कर्मेन्द्रियपरिवर्त्तनं भद्रं कल्याणमार्गं प्रति चालय (अध) अनन्तरौ (ते-अन्धसः सख्ये) तव सोमस्य “अन्धः सोमः” [काठ० ३४।१४] शान्तस्वरूपस्य परमात्मनो मित्रभावे वर्त्तमाना वयम् (रणन्) रममाणाः स्याम (वः-मदे वि) तव हर्षप्रदस्वरूपे विशिष्टं वर्त्तेमहि। (गावः नः-यवसे) यथा गावो घासे वर्तन्ते। (विवक्षसे) त्वं महान् असि ॥१॥