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अग्ने॑ शु॒क्रेण॑ शो॒चिषो॒रु प्र॑थयसे बृ॒हत् । अ॒भि॒क्रन्द॑न्वृषायसे॒ वि वो॒ मदे॒ गर्भं॑ दधासि जा॒मिषु॒ विव॑क्षसे ॥

English Transliteration

agne śukreṇa śociṣoru prathayase bṛhat | abhikrandan vṛṣāyase vi vo made garbhaṁ dadhāsi jāmiṣu vivakṣase ||

Pad Path

अग्ने॑ । शु॒क्रेण॑ । शो॒चिषा॑ । उ॒रु । प्र॒थ॒य॒से॒ । बृ॒हत् । अ॒भि॒ऽक्रन्द॑न् । वृ॒ष॒ऽय॒से॒ । वि । वः॒ । मदे॑ । गर्भ॑म् । द॒धा॒सि॒ । जा॒मिषु॑ । विव॑क्षसे ॥ १०.२१.८

Rigveda » Mandal:10» Sukta:21» Mantra:8 | Ashtak:7» Adhyay:7» Varga:5» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:8


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! (शुक्रेण शोचिषा) शुभ्र ज्ञानप्रकाश से (उरु बृहत् प्रथयसे) बहुत प्रकार से महान् प्रसिद्धि को प्राप्त होकर सर्वत्र व्याप्त है (अभिक्रन्दन् वृषायसे) ज्ञानोपदेश करता हुआ-अमृतवृष्टि करता हुआ प्रतिभासित हो रहा है (जामिषु गर्भं दधासि) तुझे प्राप्त करनेवाले उपासकों में वेदोपदेश को धारण कराता है (वः-मदे वि) तुझे हर्ष के निमित्त विशेषरूप से वरण करते हैं (विवक्षसे) तू महान् है ॥८॥
Connotation: - अपने शुभ्र तेज से बहुप्रख्यात सर्वत्र व्यापक महान् परमात्मा ज्ञान का उपदेश करता हुआ तथा अमृतवृष्टि बरसाता हुआ उपासकों के अन्दर साक्षात् होता है। उसे आनन्द हर्ष के निमित्त वरना चाहिए ॥८॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! (शुक्रेण शोचिषा) शुभ्रेण ज्ञानप्रकाशेन (उरु बृहत् प्रथयसे) बहुविधम् “उरु बहुविधम्” [यजु० १।७ दयानन्दः] महत् प्रख्यायसे सर्वत्र व्याप्नोषि (अभिक्रन्दन् वृषायसे) ज्ञानोपदेशं कुर्वन्-अमृतवृष्टिकर्त्तेव प्रतिभासि (जामिषु गर्भं दधासि) त्वां प्राप्तुं कर्त्तृषु स्वोपासकेषु “जमति गतिकर्मा” [निघ० २।१४] शब्दं वेदप्रवचनं धारयसि (वः-मदे) त्वां हर्षाय (वि) विशिष्टं वृणुयाम (विवक्षसे) विशिष्टं महत्त्ववान् भवसि ॥८॥