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त्वां य॒ज्ञेष्वी॑ळ॒तेऽग्ने॑ प्रय॒त्य॑ध्व॒रे । त्वं वसू॑नि॒ काम्या॒ वि वो॒ मदे॒ विश्वा॑ दधासि दा॒शुषे॒ विव॑क्षसे ॥

English Transliteration

tvāṁ yajñeṣv īḻate gne prayaty adhvare | tvaṁ vasūni kāmyā vi vo made viśvā dadhāsi dāśuṣe vivakṣase ||

Pad Path

त्वाम् । य॒ज्ञेषु॑ । ई॒ळ॒ते॒ । अग्ने॑ । प्र॒ऽय॒ति । अ॒ध्व॒रे । त्वम् । वसू॑नि । काम्या॑ । वि । वः॒ । मदे॑ । विश्वा॑ । द॒धा॒सि॒ । दा॒शुषे॑ । विव॑क्षसे ॥ १०.२१.६

Rigveda » Mandal:10» Sukta:21» Mantra:6 | Ashtak:7» Adhyay:7» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:6


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! (यज्ञेषु प्रयति-अध्वरे) यजनीय प्रसङ्गों-श्रेष्ठ कर्मों में प्रवर्तमान अध्यात्मसाधक ध्यान में (त्वाम्-ईळते) साधारण जन तेरी स्तुति करते हैं (त्वं दाशुषे) उन साधारण जनों में जो अपने आत्मा को तेरे लिए दे देते हैं-समर्पित कर देते हैं, ऐसे जनों के लिए तू (विश्वा काम्या वसूनि दधासि)  संसार में बसाने की हेतु सारी कमनीय वस्तुएँ दान करता है (वः-मदे वि) तुझे हर्ष के निमित्त विशिष्टरूप से वरते हैं (विवक्षसे) तू विशिष्ट महान् है ॥६॥
Connotation: - यजनीय श्रेष्ठ कर्मों में, ध्यान में परमात्मा की साधारण जन स्तुति करते हैं-श्रेष्ठ कर्मों की सिद्धि के लिए, परन्तु जो उसमें अपने आत्मा को सपर्पित कर देता है, उसके लिए वह परमात्मा समस्त सुख की वस्तुएँ प्रदान करता है, अतः हर्ष व आनन्द के निमित्त उसको वरना चाहिए ॥६॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! (यज्ञेषु प्रयति-अध्वरे) यजनीयप्रसङ्गेषु श्रेष्ठकर्मसु प्रवर्तमानेऽध्यात्महितसाधके ध्याने (त्वाम्-ईडते) त्वां स्तुवन्ति लौकिका जनाः (त्वं दाशुषे) तेषु जनेषु यः खलु दाश्वान् स्वात्मानं तुभ्यं दत्तवान् तस्मै ह्यात्मसमर्पिणे त्वम् (विश्वा काम्या वसूनि दधासि) समस्तानि कमनीयानि संसारे वासहेतूनि वस्तूनि धारयसि तस्मै दानाय (वः-मदे वि) त्वां हर्षनिमित्ताय विशिष्टं वृणुयाम (विवक्षसे) त्वं विशिष्टो महानसि ॥६॥