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यम॑ग्ने॒ मन्य॑से र॒यिं सह॑सावन्नमर्त्य । तमा नो॒ वाज॑सातये॒ वि वो॒ मदे॑ य॒ज्ञेषु॑ चि॒त्रमा भ॑रा॒ विव॑क्षसे ॥

English Transliteration

yam agne manyase rayiṁ sahasāvann amartya | tam ā no vājasātaye vi vo made yajñeṣu citram ā bharā vivakṣase ||

Pad Path

यम् । अ॒ग्ने॒ । मन्य॑से । र॒यिम् । सह॑साऽवन् । अ॒म॒र्त्य॒ । तम् । आ । नः॒ । वाज॑ऽसातये । वि । वः॒ । मदे॑ । य॒ज्ञेषु॑ । चि॒त्रम् । आ । भ॒र॒ । विव॑क्षसे ॥ १०.२१.४

Rigveda » Mandal:10» Sukta:21» Mantra:4 | Ashtak:7» Adhyay:7» Varga:4» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:4


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अमर्त्य सहसावन्-अग्ने) हे सदा वर्तमान जन्ममरण से रहित बहुत बलवान् अग्रणायक परमात्मन् ! (यं रयिं मन्यसे) जिस अध्यात्म ऐश्वर्य को हमारे लिए कल्याणकारी तू मानता है, (तं वाजसातये नः-आ भर) उस अमृतान्न का सेवन करते हुए मुक्ति के लिए हमें प्राप्त करा-पहुँचा (यज्ञेषु) अध्यात्मयज्ञ प्रसङ्ग में (चित्रम्) चायनीय-दर्शनीय (मदे) हर्ष के निमित्त (आ) प्राप्त करा (विवक्षसे वि) तुझे विशिष्टरूप से वरते हैं ॥४॥
Connotation: - परमात्मा जन्ममरण से रहित और बहुत बलवान् है, इसलिए सारे संसार को संभालने में समर्थ है। मानव के लिए जिस सम्पत्ति को श्रेष्ठ समझता है, उस मुक्तिरूप सम्पदा को प्राप्त कराता है। अध्यात्म-प्रसङ्गों में हर्ष के निमित्त परमात्मा का वरण करना चाहिए, वह बड़ा महान् है ॥४॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अमर्त्य सहसावन्-अग्ने) हे सदावर्तमान जन्ममरणरहित बहुबलवन् ! “बहु सहो बलं विद्यते यस्य तत्सम्बुद्धौ भूम्नि भूमार्थे मतुप्” [ऋ० १।९१।२३ दयानन्दः] अग्रणायक परमात्मन् ! (यं रयिं मन्यसे) यमध्यात्ममैश्वर्यमस्मभ्यं जानासि (तं वाजसातये नः-आ भर) तममृतान्नं सेव्यते यस्यां सा मुक्तिस्तस्यै-अस्मानाभर धापय (यज्ञेषु) अध्यात्मयज्ञप्रसङ्गेषु (चित्रम्) चायनीयं दर्शनीयं (मदे) हर्षाय हर्षनिमित्ते (आ) प्रापयेति सम्बन्धः (विवक्षसे वि) त्वां विशिष्टं वृणुयाम ॥४॥