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उप॑ सर्प मा॒तरं॒ भूमि॑मे॒तामु॑रु॒व्यच॑सं पृथि॒वीं सु॒शेवा॑म् । ऊर्ण॑म्रदा युव॒तिर्दक्षि॑णावत ए॒षा त्वा॑ पातु॒ निॠ॑तेरु॒पस्था॑त् ॥

English Transliteration

upa sarpa mātaram bhūmim etām uruvyacasam pṛthivīṁ suśevām | ūrṇamradā yuvatir dakṣiṇāvata eṣā tvā pātu nirṛter upasthāt ||

Pad Path

उप॑ । स॒र्प॒ । मा॒तर॑म् । भूमि॑म् । ए॒ताम् । उ॒रु॒ऽव्यच॑सम् । पृ॒थि॒वीम् । सु॒ऽशेवा॑म् । ऊर्ण॑ऽम्रदाः । यु॒व॒तिः । दक्षि॑णाऽवते । ए॒षा । त्वा॒ । पा॒तु॒ । निःऽऋ॑तेः । उ॒पऽस्था॑त् ॥ १०.१८.१०

Rigveda » Mandal:10» Sukta:18» Mantra:10 | Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:27» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:10


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (एताम्-उरुव्यचसं पृथिवीं सुशेवां भूमिं मातरम्-उपसर्प) हे जीव ! जन्म धारण करने के लिये तू इस बहुत प्रकार से जीव व्यक्तियों को प्रकट करनेवाली विस्तृत और अनुकूलता की सम्पादिका भूमि रूपी माता को प्राप्त हो (दक्षिणावते-एषा युवतिः-ऊर्णम्रदाः) स्वकर्मफल शरीर के धारण योग्य जीव के लिये यह युवति की भाँति या बीज को अपने अन्दर मिलानेवाली कृषिभूमि की भाँति (निर्ऋतेः-उपस्थात् त्वा पातु) मृत्युरूप घोर आपत्ति के आञ्चल से तेरी रक्षा करे ॥१०॥
Connotation: - आरम्भ सृष्टि में सब जीवों की एकमात्र माता पृथिवी ही होती है। अत एव उस समय मनुष्यों की भी अमैथुनी सृष्टि होती है। नानाभेदों से मनुष्यादि शरीरों का प्रादुभार्व होता है। आरम्भ सृष्टि में पृथ्वी युवति जैसी या कृषिभूमि जैसी कोमल होती है ॥१०॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (एताम्-उरुव्यचसं पृथिवीं सुशेवां भूमिं मातरम्-उपसर्प) हे जीव ! जन्म धारयितुं योग्यां त्वमेतां बहुशरीर-व्यक्ति-निर्मात्रीं पृथिवीं सुखसम्पादिकां भूमिं मातरमुपगच्छाश्रयस्व (दक्षिणावते-एषा युवतिः-ऊर्णम्रदाः) स्वकर्मफल-शरीरधारण योग्यजीवायैषा युवतिरिव यद्वा बीजं स्वान्तरे मिश्रयती कृषिभूमिरिव ऊर्णवन्मृद्वी भवति (निर्ऋतेः-उपस्थात् त्वा पातु) मृत्युरूपायाः कृच्छ्रापत्तेः “निर्ऋतिर्निरमणादृच्छतेः कृच्छ्रापत्तिः” [निरु०२।८] उपाश्रयात् त्वां रक्षतु ॥१०॥