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अ॒यं हि ते॒ अम॑र्त्य॒ इन्दु॒रत्यो॒ न पत्य॑ते । दक्षो॑ वि॒श्वायु॑र्वे॒धसे॑ ॥

English Transliteration

ayaṁ hi te amartya indur atyo na patyate | dakṣo viśvāyur vedhase ||

Pad Path

अ॒यम् । हि । ते॒ । अम॑र्त्यः । इन्दुः॑ । अत्यः॑ । न । पत्य॑ते । दक्षः॑ । वि॒श्वऽआ॑युः । वे॒धसे॑ ॥ १०.१४४.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:144» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:8» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:11» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में वीर्यरक्षा के उपाय और लाभ कहे गये हैं, मृत्युभय से बचाता है, यह आयुवर्धक, परमात्मा के साथ समागम करानेवाला है, रक्षणप्रकार शिवसङ्कल्प है, इत्यादि विषय हैं।

Word-Meaning: - (ते) हे आत्मन् ! तेरे लिये (अयं हि-अमर्त्यः-इन्दुः) यह ही न मरणधर्मी जिससे होता है, बन जाता है, वह ऐसा मानवबीज पदार्थ रेतोरूप इन्दु है। ब्रह्मचर्य से मृत्यु को जीतता है (अत्यः-न पत्यते) निरन्तर गमनशील अतिथि की भाँति महत्त्व को प्राप्त होता है। (वेधसे)  इन्द्र-आत्मा के लिए (दक्षः-विश्वायुः) बलरूप बलप्रद आयु-पूर्ण आयु जिससे होती है, ऐसा है ॥१॥
Connotation: - मनुष्य के अन्दर एक तत्त्व मानवबीज या वीर्य-ब्रह्मचर्य नाम से प्रसिद्ध है, जो मृत्यु से-मृत्यु के दुःख के बचानेवाला है, ऐसा बल या बलप्रद तथा पूर्णायु को भुगानेवाला है, उसकी रक्षा करनी चाहिए ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्ते वीर्यरक्षणस्य प्रकाराः लाभाश्चोपदिश्यन्ते मृत्युभयात् त्राता वीर्यपदार्थः, आयुर्वर्धकः परमात्मना सह समागमस्य हेतुरित्येवमादयो लाभा उच्यन्ते रक्षाप्रकारश्च शिवसङ्कल्प इत्यपि वर्ण्यते।

Word-Meaning: - (ते) हे इन्दु ! आत्मन् ! तुभ्यम् (अयं हि-अमर्त्यः-इन्दुः) एष हि न मर्त्यो मरणधर्मो भवति येन स तथाभूतोऽमर्त्यो रेतो मानवसत्त्वभूतः पदार्थः-इन्दुः “रेतो वा इन्दुः” [तै० सं० ६।५।८।३] “ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत” [अथर्व० ११।५।१९] (अत्यः-न पत्यते) निरन्तरं गमनशीलोऽतिथिरिवेश्वरत्वं महत्त्वं प्राप्नोति “पत्यते ऐश्वर्यकर्मा” [निघ० २।२१] (वेधसे) इन्द्राय जीवात्मने “इन्द्रो वै वेधाः” [ऐ० ६।१०] (दक्षः-विश्वायुः) बलरूपो बलप्रदस्तथा विश्वं सर्वमायुर्यस्मात् तथाभूतोऽस्ति ॥१॥