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अ॒र्य॒मणं॒ बृह॒स्पति॒मिन्द्रं॒ दाना॑य चोदय । वातं॒ विष्णुं॒ सर॑स्वतीं सवि॒तारं॑ च वा॒जिन॑म् ॥

English Transliteration

aryamaṇam bṛhaspatim indraṁ dānāya codaya | vātaṁ viṣṇuṁ sarasvatīṁ savitāraṁ ca vājinam ||

Pad Path

अ॒र्य॒मण॑म् । बृह॒स्पति॑म् । इन्द्र॑म् । दाना॑य । चो॒द॒य॒ । वात॑म् । विष्णु॑म् । सर॑स्वतीम् । स॒वि॒तार॑म् । च॒ । वा॒जिन॑म् ॥ १०.१४१.५

Rigveda » Mandal:10» Sukta:141» Mantra:5 | Ashtak:8» Adhyay:7» Varga:29» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:11» Mantra:5


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (अर्यमणम्) हे अग्ने परमात्मन् ! तू सूर्य को (दानाय) स्वप्रकाशदान करने के लिए (चोदय) प्रेरित कर (बृहस्पतिम्) ऊर्ध्वदिग्वर्ती विद्युद्रूप अग्नि को वृष्टिदान के लिए प्रेरित कर (इन्द्रम्) अन्तरिक्षवाले वायु को विमान चलाने-गति देने के लिए प्रेरित कर (वातम्) पृथिवी के वायु को श्वास प्रदान के लिए प्रेरित कर (विष्णुम्) पृथिवी के अन्दर व्यापक उसे पिण्डीभूत कर ओषधि देने के लिए प्रेरित कर (सरस्वतीम्) नदी को स्वजलप्रवाह देने के लिए प्रेरित कर (च) और (वाजिनं सवितारम्) बलवान् जीवनसंचार करनेवाले उदय होनेवाले सूर्य को जीवन देने के लिए प्रेरित कर ॥५॥
Connotation: - आदित्य, बृहस्पति-आकाश की विद्युत् अन्तरिक्ष की वायु, पृथिवी की वायु, पृथिवी के अन्दर के विष्णु-व्यापक अग्नि तत्त्व, नदी और प्रातःकाल उदय होनेवाले सूर्य को अपने-अपने लाभ देने के लिए प्रेरित करता है, वह स्तुति करने योग्य है ॥५॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (दानाय चोदय) हे अग्ने परमात्मन् ! “उत्तरमन्त्रात् ‘अग्ने’ पदं गृह्यते” स्वलाभदानाय प्रेरय यथा (अर्यमणम्) सूर्यम् “अर्यमाऽदित्यः” [निरु० ११।२३] प्रकाशदानाय प्रेरय (बृहस्पतिम्) ऊर्ध्वदिग्वर्तिनं विद्युद्रूपाग्निं-वृष्टिकर्त्तारम् “बृहस्पतिः-बृहतां पालको विद्युद्रूपोऽग्निः” [यजु० २८।१० दयानन्दः] वृष्टिदानाय प्रेरय (इन्द्रम्) आन्तरिक्ष्यवायुम् “यौ वै वायुः स इन्द्रः” [श० ४।१।३।९] विमानचालनार्थं गतिदानाय प्रेरय (वातम्) पार्थिववायुं श्वासप्रदानाय प्रेरय (विष्णुम्) पृथिव्यां व्यापकं पृथिव्याः पिण्डीभूतत्वस्य कारणमोषधिदानाय प्रेरय “ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपति...वीरुध...इषवः” [अथर्व० ३।२७।५] उक्तत्वात् (सरस्वतीम्) नदीम् “सरस्वत्यो नद्यः” [निघ० १।१३] स्वजलप्रवाहदानाय प्रेरय (च) तथा (वाजिनं सवितारम्) बलवन्तं जीवनसञ्चारकर्त्तारं प्रातरुदयन्तं सूर्यं जीवनदानाय प्रेरय ॥५॥