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पुमाँ॑ एनं तनुत॒ उत्कृ॑णत्ति॒ पुमा॒न्वि त॑त्ने॒ अधि॒ नाके॑ अ॒स्मिन् । इ॒मे म॒यूखा॒ उप॑ सेदुरू॒ सद॒: सामा॑नि चक्रु॒स्तस॑रा॒ण्योत॑वे ॥

English Transliteration

pumām̐ enaṁ tanuta ut kṛṇatti pumān vi tatne adhi nāke asmin | ime mayūkhā upa sedur ū sadaḥ sāmāni cakrus tasarāṇy otave ||

Pad Path

पुमा॑न् । ए॒न॒म् । त॒नु॒ते॒ । उत् । कृ॒ण॒त्ति॒ । पुमा॑न् । वि । त॒त्ने॒ । अधि॑ । नाके॑ । अ॒स्मिन् । इ॒मे । म॒यूखाः॑ । उप॑ । से॒दुः॒ । ऊँ॒ इति॑ । सदः॑ । सामा॑नि । च॒क्रुः॒ । तस॑राणि । ओत॑वे ॥ १०.१३०.२

Rigveda » Mandal:10» Sukta:130» Mantra:2 | Ashtak:8» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:10» Anuvak:11» Mantra:2


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (पुमान्) परमपुरुष परमात्मा (एनम्) इस ब्राह्मयज्ञ या शरीरयज्ञ को (तनुते) तानता है-रचता है (उत् कृणत्ति) पुनः-उद्वेष्टित करता है, लपेटता है (पुमान्-अधि नाके) वह परमात्मा मोक्ष में (अस्मिन्) और इस संसार में शरीरयज्ञ को (वि तत्ने) विस्तृत करता है-रचता है (इमे मयूखाः) ये ज्ञानप्रकाशादि गुण या रश्मियाँ (सदः-उप सेदुः) उसी ब्राह्मयज्ञ या शरीरयज्ञ को प्राप्त होते हैं (सामानि तसराणि) समानता में होनेवाले-सुख देनेवाले बन्धनों को, सूत्रों को (ओतवे चक्रुः) रक्षा के लिए करते-बनाते हैं ॥२॥
Connotation: - परमात्मा ब्राह्मयज्ञ और शरीरयज्ञ को रचता है और वही उसको समाप्त कर देता है, मोक्ष में ब्राह्मयज्ञ संसार में शरीरयज्ञ का विस्तार करता है और मोक्ष में परमात्मा के ज्ञान प्रकाशादि गुण से प्रकाशित होता है और संसार में सूर्य की रश्मियों से ये उसका रक्षण करते हैं ॥२॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (पुमान्-एतं तनुते) परमपुरुषः परमात्मा-एतं ब्राह्मयज्ञं शरीरयज्ञं वा तानयति रचयति (उत् कृणत्ति) उद्वेष्टयति ‘कृती वेष्टने’ [रुधादि०] (पुमान्-अधि नाके-अस्मिन् वि तत्ने) परमात्मा मोक्षे ब्राह्मयज्ञं तथाऽस्मिन् लोके शरीरयज्ञं विस्तारयति विरचयति (इमे-मयूखाः सदः-उप सेदुः) एते ज्ञानप्रकाशादयो गुणाः-रश्मयो वा “मयूखैर्ज्ञानप्रकाशादिगुणैः-रश्मिभिर्वा” [यजु० ५।१६ दयानन्दः] “मयूखा रश्मिनाम” [निघ० १।५] सदनं तमेव ब्राह्मयज्ञं शरीरयज्ञं स्थानमुपसीदन्ति (सामानि तसराणि-ओतवे-चक्रुः) समतायां भवानि सुखयितॄणि सूत्राणि बन्धनानि रक्षकाणि “तन्यृषिभ्यां क्सरन्” [उणादि० ३।७५] वयनाय कुर्वन्ति ॥२॥