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प्रेन्द्रा॒ग्निभ्यां॑ सुवच॒स्यामि॑यर्मि॒ सिन्धा॑विव॒ प्रेर॑यं॒ नाव॑म॒र्कैः । अया॑ इव॒ परि॑ चरन्ति दे॒वा ये अ॒स्मभ्यं॑ धन॒दा उ॒द्भिद॑श्च ॥

English Transliteration

prendrāgnibhyāṁ suvacasyām iyarmi sindhāv iva prerayaṁ nāvam arkaiḥ | ayā iva pari caranti devā ye asmabhyaṁ dhanadā udbhidaś ca ||

Pad Path

प्र । इ॒न्द्रा॒ग्निऽभ्या॑म् । सु॒ऽव॒च॒स्याम् । इ॒य॒र्मि॒ । सिन्धौ॑ऽइव । प्र । ई॒र॒य॒म् । नाव॑म् । अ॒र्कैः । अयाः॑ऽइव । परि॑ । च॒र॒न्ति॒ । दे॒वाः । ये । अ॒स्मभ्य॑म् । ध॒न॒ऽदाः । उ॒त्ऽभिदः॑ । च॒ ॥ १०.११६.९

Rigveda » Mandal:10» Sukta:116» Mantra:9 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:10» Mantra:9


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्राग्निभ्याम्) यन्त्रप्रयुक्त वायु और अग्नि के द्वारा (नावम्) नौका को (सिन्धौ-इव) जैसे समुद्र में या नदी में प्रेरित करते हैं तथा चलाते हैं (अर्कैः) मन्त्रों के द्वारा (सुवचस्याम्) सुस्तुति और आशीर्वादरूप वाणी को (प्र-इयर्मि) राजा के लिये या आत्मा के लिये प्रेरित करता हूँ (अयाः-इव) प्राप्त होनेवाले सभासद् या पारिवारिकजन (परि चरन्ति) सेवा करते हैं (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (ये देवाः) जो विद्वान् (धनदाः) ज्ञान धन देनेवाले (च-उद्भिदः) और दुःखों का उद्भेदन करनेवाले-नष्ट करनेवाले हैं, वे ऐसे तुझ राजा की या आत्मा की सेवा करते हैं-प्रसन्न करते हैं ॥९॥
Connotation: - जैसे यन्त्रप्रयुक्त वायु और अग्नि के द्वारा नौका नदी या समुद्र में प्रेरित की जाती है, वैसे मन्त्रों शुद्धविचारों के द्वारा राजा की प्रशंसा और आत्मा की आशीर्वादरूप वाणी को राजा के लिये और आत्मा के लिये प्रेरित की जानी चाहिये, राजा को प्राप्त होनेवाले सभासद् और आत्मा को प्राप्त होनेवाले पारिवारिक जन सेवा करें उसे प्रसन्न करें और ज्ञानधन देनेवाले विद्वान् अज्ञान दुःख का छेदन करें ॥९॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्राग्निभ्यां नावं सिन्धौ-इव) वाय्वग्निभ्यां नावं यथा नद्यां समुद्रे वा प्रेरयन्ति तथा (अर्कैः-सुवचस्यां प्र-इयर्मि) मन्त्रैः सुस्तुतिमाशीर्वादरूपां प्रेरयामि राज्ञे-आत्मने वा (अयाः-इव) प्राप्तकर्त्तारः-सभासदः पारिवारिका जना वा “इवोऽपि दृश्यते” [निरु० १।११] पदपूरणः (परि चरन्ति) सेवन्ते (अस्मभ्यं ये देवाः धनदाः-उद्भिदः-च) अस्मभ्यं ये विद्वांसो ज्ञानदातारः-दुःखानामुच्छेदनकर्त्तारश्च ते सर्वे त्वां राजानमात्मानं वा परिचरन्ति प्रसीदन्ति ॥९॥